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बैसाखी का त्योहार क्यों मानते हैं

 बैसाखी का महत्व पौराणिक कथाओं के अनुसार, बैसाखी के मौके पर गंगा में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन हिंदू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान करके देवी गंगा की स्तुति करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना विशेष महत्व है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी बैसाखी का बेहद शुभ व मंगलकारी महत्व है क्योंकि इस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है और मेष संक्रांति भी मनाई जाती है। मेष संक्रांति के मौके पर पर्वतीय इलाके में देवी की पूजा-पाठ करते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

बैसाखी शब्द बैसाख से लिया गया है बैसाख भारतीय महीने का नाम है। हरियाणा और पंजाब के किसान फसल काटने की खुशी में बैसाखी मनाते हैं। यह दिन काफी महत्वपूर्ण है माना जाता है इस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। बैसाखी के बाद किसान अपनी गेहूं की फसल काटकर खुशिया मनाते हैं। इस दिन गंगा में स्नान को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक इसी दिन सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने वैशाख महीने की षष्ठी तिथि को खालसा पंथ की नींव रखी थी और सभी तरह की सामाजिक ऊंच-नीच को खत्म करके पंज प्यारों के हाथों से अमृत चखकर सिंह की उपाधि धारण की थी। इसके बाद ही सिखों के लिए केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृ्पाण धारण करना जरूरी किया गया था।


इसके अलावा बैसाखी के त्योहार को सर्दियों का अंत और गर्मियों की शुरुआत भी माना जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तमिलनाडु में पुथंडू के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इसे नब बर्षा, असम में रोंगाली बीहू, बिहार में इसे वैषाख और केरल में इस त्योहार को 'विशु' कहते हैं। बैसाखी का त्योहार पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।

बैसाखी का महत्व पौराणिक कथाओं के अनुसार, बैसाखी के मौके पर गंगा में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन हिंदू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान करके देवी गंगा की स्तुति करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना विशेष महत्व है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी बैसाखी का बेहद शुभ व मंगलकारी महत्व है क्योंकि इस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है और मेष संक्रांति भी मनाई जाती है। मेष संक्रांति के मौके पर पर्वतीय इलाके में देवी की पूजा-पाठ करते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

मेष संक्रांति पर मनाया जाता है बैसाखी
बैसाखी का पर्व हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है और इस दिन ही ग्रहों के राजा सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं, जिसे मेष संक्रांति कहा जाता है। भारतीय परंपराओं के अनुसार संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान के साथ जप-तप और ध्यान किया जाता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि बैसाखी के दिन गंगा में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

गुरु गोविंद सिंहजी ने की थी खालसा पंथ की स्थापना
बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाते हैं क्योंकि इस दिन सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी ने 13 अप्रैल सन् 1699 में आनंदपुर साहिब में मुगलों के अत्याचारों से मुकाबला करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही गोविंद सिंहजी ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया था। इसके बाद सिख समुदाय के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना मार्गदर्शन बनाया। साथ ही इस दिन सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह स्वीकार किया था। यह भी इस दिन को खास बनाने के लिए एक कारण है।



बैसाखी का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बैसाखी के मौके पर गंगा में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन हिंदू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान करके देवी गंगा की स्तुति करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना विशेष महत्व है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी बैसाखी का बेहद शुभ व मंगलकारी महत्व है क्योंकि इस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है और मेष संक्रांति भी मनाई जाती है। मेष संक्रांति के मौके पर पर्वतीय इलाके में देवी की पूजा-पाठ करते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।


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