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इंजीनियर्स ने कैसे संभव किया बुर्ज खलीफा को बनाने का असंभव कार्य

बुर्ज खलीफा के कंस्ट्रक्शन चल रहा था पूरा स्ट्रक्चर तो किसी तरह खड़ा कर लिया गया लेकिन अब बारी थी विंडो पेनल्स लगाने की इंजीनियर्स का माना था कि विंडो पेनल्स लगाने में कोई रॉकेट साइंस नहीं है. लिहाजा इस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिस का किसी को अंदाजा नहीं था. दुबई की कड़कती गर्मी में और दुनिया की सब से ऊँची इमारत पर जो विंडो पेनल्स लगाए जाने थे उन को लगाने से बुर्ज खलीफा के अन्दर का तापमान दिन के समय 100 डिग्री सेंटीग्रेड जा पहुंचा इतने अधिक तापमान में किसी इंसान का इमारत में प्रवेश करना किसी भी हालत में संभव नहीं है. यह समस्या बुर्ज खलीफा के निर्माण में आने वाली सब से बढ़ी मुश्किल थी जिस ने इमारत निर्माण टीम को मुसीबत में डाल दिया. इस समस्या के चलते पूरे 18 महीने इमारत निर्माण का कार्य रुका रहा लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिस ने इंजीनियर्स के खत्म होते सपनों को बचा लिया. 

                                  

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बुर्ज खलीफा विश्व की सब से ऊँची इमारत है. 2716 फिट ऊँची बादलों को चीरती इस इमारत पर 114अरब रुपयों का खर्चा आया. सिर्फ पैसों के लिए नहीं बल्कि यह इमारत इंजीनियर्स इतिहास का एक अतभुत कारनामा माना जाता है. यह अतभुत कारनामा किस मुश्किल से गुजर कर पूरा किया गया उन्हें किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा और किस तरहा इन मुश्किलों को सुलझाया गया आईये इन बातों को जानते हैं. 


1- बुर्ज खलीफा को बनाने में सब से पहली समस्या थी इस का निर्माण कार्य सही समय पर पूरा होना, क्यूंकि इंजीनियर्स को कार्य संपन करने के लिए सिर्फ 6 सालों का वक्त दिया गया था. इस दिये गए वक्त में ही उन्हें ये कारनामा कर दिखाना था. इमारत का स्ट्रक्चर बनाने के लिये ही 3 साल का समय जरुरी था. किन्तु 3 साल यदि सिर्फ इमारत का स्ट्रक्चर बनाने के लिये लगा दीए जाते तो 3 साल में इमारत का कार्य पूरा करना मुमकिन नहीं था. इस कारण इंजीनियर्स ने फैसला लिया की बुर्ज खलीफा के निर्माण का कार्य बिना स्ट्रक्चर बनाए ही शुरू कर दिया जाए. इसी वजह से फरवरी 2004 में खुदाई का काम स्टॉर्ट हो गया. किन्तु स्ट्रक्चर बनाने का कार्य भी साथ साथ चलता रहा


2- जब बुर्ज खलीफा की बुनियाद की तैयारी का वक्त आया तब एक और मुश्किल सामने आ खड़ी हुई. आमतौर पर बढ़ी इमारतों की बुनियाद का कार्य वहां की जमीन के अंदर मौजूद पत्थरों पर डाली जाती है किन्तु जिस जगह बुर्ज खलीफा बनना था उस जगह या तो रेतीले पत्थर थे या कमजोर जिस कारण सवाल यह उठा की क्या दुनिया की सब से ऊँची इमारत इन कमजोर  पत्थरों पर की जाएगी, क्या ये कमजोर पत्थर इतना वजन उठा सकेंगे तो इस समस्या से निपटनें के लिए साइंस के एक नियम का इस्तमाल किया गया वो था फ्रिक्शन जी हैं बुर्ज खलीफा की बुनियाद 192 स्टील की रॉड पर खड़ी की गई जो 50 मीटर जमीन के अन्दर तक धंसे हुए हैं. 

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3- बुर्ज खलीफा के स्ट्रक्चर निर्माण के लिए कंस्ट्रक्शन कम्पनी ईएमएएआर (EMAAR) ने चिकागो में टॉप आर्किटक फर्म से राब्ता किया यह आर्किटक फर्म माजी में भी कई ऊँची इमारत के स्ट्रक्चर बना चूकि थी. किन्तु दुनिया की सब से बढ़ी इमारत के स्ट्रक्चर बनाने में इन की भी हालत खराब हो गई. इनकी चुनौती थी की स्ट्रक्चर लाखों टन का वजनी इमारत का वजन उठाए एवं साथ ही जिस के फ्लोर प्रकृतिक लाइट से रोशन हो और वह इमारत 160 मंजिला हो. इस समस्या का समधान उन्होंने दिन रात मेहनत कर निकाल ही लिया और वह था (buttress) बट्रेस स्ट्रक्चर जिस का इस्तेमाल दुनिया में पहली बार किया गया. 


4- बुर्ज खलीफा के निर्माण का कार्य शुरू हुआ कुछ मंजिलें बन जाने के बाद निर्माताओं के सामने एक और समस्या खड़ी हो गई वह समस्या यह थी की वे जो कंक्रीट का मिक्चर ऊपर भेज रहे थे वह ऊपर पहुँचते पहुँचते सूख जाता था. इस समस्या का एक ही समाधान था, कंक्रीट सकशन सिस्टम. यह कोई छोटा मोटा कार्य तो था नहीं क्यूंकि बुर्ज खलीफा बनाने में लगने वाला कंक्रीट का पूरा वजन 100,000 हाथियों के वजन के बराबर था. इतना ज्यदा कंक्रीट पम्प करने के लिए दुनिया के सब से ताकतवर 3 पम्प मंगवाए गए, जिन्होंने यह कार्य किया. 

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5- निर्माण के कार्य को अब तीन साल गुजर गए थे. बुर्ज खलीफा के 140 मंजिल का कार्य हो चूका था. इमारत ने दुनिया की सब से ऊँची इमारत होने की उपलब्धि 140 मंजिल के कार्य होने के बाद ही पा लिई थी. किन्तु निर्माताओं के पास जो किरेन थी वह मटेरियल को 120 मंजिल तक ही पहुंचा सकती थी. इस के साथ ही जो किरेन ऑपरेटर थे उन्होंने इतनी ऊंचाई पर कार्य करने से माना कर दिया था. जिस कारण निर्माताओं ने पूरी दुनिया से टॉप किरेन ऑपरेटर को बुलवाया गया, ये सभी अलग-अलग भाषाएं बोलते थे किन्तु उन सभी में एक बात थी वे ऊंचाई से नहीं डरते थे. 700 मीटर की ऊंचाई पर ये किरेन ऑपरेटर दिन के 12 घंटे कार्य करते थे. 


6-  बुर्ज खलीफा के प्रक्षेपण में सिर्फ 2 साल का समय बचा था लेकिन एक चीज कहीं नजर नहीं आ रही थी वो थे विंडो पेनल्स. जी बिल्कुल बुर्ज खलीफा में पूरी तरहा 24000 विंडो पेनल्स लगाए जाने थे. जब उन्हें लगाने की बरी आई तो इमारत के अन्दर तापमान दुबई की गर्मी के चलते एवं ऊंचाई के कारण 100 डिग्री सेंटीग्रेड तक जा पहुंचा.इन पेनल्स के इस्तमाल के कारण इमारत को ठंडा रखने में 10गुना बिजली की आवश्कता पड़ती थी. पूरे 18 महीने इस समस्या के हल ढूढ़ने में गुजर गए. लेकिन फिर मशहूर इंजीनियर john zerafa ने कहा उन के पास समस्या का हल मौजूद है किन्तु यह तरीका बहुत महंगा होगा. उन की इस सोच को मंजूरी दी गई क्यूंकि इस के आलावा कोई रास्ता भी नहीं था. john ने एक खास तरह की कांच बनाई जो की सूरज की आने वाली यूवी किरणों को परिवर्तित कर देता था लेकिन इस एक विंडो पेनल् की कीमत 2000 डॉलर थी एवं ऐसे 24000 विंडो पेनल्स बनाए जाने थे. इन की कीमत 3 अरब 60 करोड़ लगभग होती थी. जिस के लिए एक पूरी कम्पनी बनाई गई जहां ये विंडो पेनल्स बनाए गए, एवं सिर्फ 4 महीनों में इन्हे तैयार कर लिया गया. 

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7- निर्माण के आखरी साल बुर्ज खलीफा प्रक्षेपण के लिए पूरी तरह तैयार था निर्माण का सारा कार्य हो चूका था  फिर भी कुछ ना कुछ अधूरा था.बुर्ज खलीफा के सब से ऊपरी हिस्से का कार्य अधूरा था. इस के ऊपर एक स्टील का पाईप लगाना था जिस की लम्बाई 136 मीटर थी, एवं इस का वजन 350टन था. दुनिया में ऐसी कोई क्रेन नहीं जो इतनी वजनी चीज को इस ऊंचाई पर ले जा कर निर्मण कार्य करे किन्तु किसीभी हाल में इस कार्य को किया जाना था क्यूंकि अब प्रक्षेपण का मामला सामने था. इस कारण इंजीनियर्स ने फैसला लिया की इसे बुर्ज खलीफा के अन्दर ही बनाया जाए. इस फैसले के चलते छोटे-छोटे हिसों को ऊपर लाया गया और फिर निर्माण का कार्य किया गया. 


8- अब बुर्ज खलीफा पूरी तरह बन कर तैयार था लिकिन सालों से चल रहे कार्य के कारण बुर्ज खलीफा पूरी तरह धूल-मिट्टी से भरा हुआ था. जिस कारण अब कार्य था इसे साफ कर चमकाने का जिस का कोई रास्ता तो समझ नहीं आया बल्कि मजदूरों को ही रस्सी से लटका कर इमारत के पूरे 24000 विंडो पेनल्स को चमकाने का कार्य किया गया, एवं यह कार्य अभी तक इस ही तरह किया जाता है.

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