भारतीय टीम ने यहां भी अपना दबदबा कायम रखा और जर्मनी को फाइनल में 8-1 से करारी शिकस्त देकर लगातार तीसरी बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल किया।
जिस समय भारतीय टीम जर्मनी को उसी के घर में धूल चटा रही थी उस समय हिटलर भी स्टेडियम में मौजूद था। जर्मनी की बुरी हालत देखकर हिटलर बीच मैच से ही उठकर स्टेडियम से चला गया।दिलचस्प बात यह है कि इस मैच से पहले एक अभ्यास मैच में जर्मनी ने भारतीय टीम को हराया था। ऐसे में जर्मन टीम को लगा की वह फाइनल में भी भारतीय टीम का विजय रथ रोक देगी।...लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जर्मनी को अपने ही घर में शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। इस टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने पांच मैचों में 11 गोल किए थे जबकि फाइनल में जर्मनी के खिलाफ उन्होंने तीन गोल दागे थे।
ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से हिटलर काफी प्रभावित किया। हिटलर ने ध्यानचंद को अपने यहा बुलाया। हिटलर ने ध्यानचंद को न सिर्फ न सिर्फ जर्मनी की नागरिकता देने की पेशकश की बल्कि उन्हें जर्मन फौज में भी अच्छा ओहदा देने का भी प्रस्ताव दिया, लेकिन ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता से हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
उस दौरान जब हिटलर के सामने न कहने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी, उस समय ध्यानचंद का प्रस्ताव ठुकरा देना बड़े साहस की बात थी। ध्यानचंद भले ही हॉकी के जादूगर थे लेकिन वह सेना में नौकरी करते थे। ध्यानचंद की न सुनते ही हिटलर चुपचाप वहां से चला गया। यह मुलाकात भले ही चंद मिनटों की थी लेकिन इस मुलाकात ने दिखा दिया की ध्यानचंद के लिए अपने देश से बड़ा कोई ओहदा नहीं था।
जिस समय भारतीय टीम जर्मनी को उसी के घर में धूल चटा रही थी उस समय हिटलर भी स्टेडियम में मौजूद था। जर्मनी की बुरी हालत देखकर हिटलर बीच मैच से ही उठकर स्टेडियम से चला गया।दिलचस्प बात यह है कि इस मैच से पहले एक अभ्यास मैच में जर्मनी ने भारतीय टीम को हराया था। ऐसे में जर्मन टीम को लगा की वह फाइनल में भी भारतीय टीम का विजय रथ रोक देगी।...लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जर्मनी को अपने ही घर में शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। इस टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने पांच मैचों में 11 गोल किए थे जबकि फाइनल में जर्मनी के खिलाफ उन्होंने तीन गोल दागे थे।
ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से हिटलर काफी प्रभावित किया। हिटलर ने ध्यानचंद को अपने यहा बुलाया। हिटलर ने ध्यानचंद को न सिर्फ न सिर्फ जर्मनी की नागरिकता देने की पेशकश की बल्कि उन्हें जर्मन फौज में भी अच्छा ओहदा देने का भी प्रस्ताव दिया, लेकिन ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता से हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
उस दौरान जब हिटलर के सामने न कहने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी, उस समय ध्यानचंद का प्रस्ताव ठुकरा देना बड़े साहस की बात थी। ध्यानचंद भले ही हॉकी के जादूगर थे लेकिन वह सेना में नौकरी करते थे। ध्यानचंद की न सुनते ही हिटलर चुपचाप वहां से चला गया। यह मुलाकात भले ही चंद मिनटों की थी लेकिन इस मुलाकात ने दिखा दिया की ध्यानचंद के लिए अपने देश से बड़ा कोई ओहदा नहीं था।
Source : Amar Ujala
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