भारत के दौरे पर पिछले दिनों आए नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड की यात्रा को लेकर उनके देश में विवाद हो गया है। प्रचंड के महाकाल मंदिर में पूजा करने पर सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं विश्लेषक इसे भारत की मोदी सरकार को खुश करने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं।
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक युबराज घिमिरे इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में कभी नहीं जाने वाले प्रचंड ने भगवा वस्त्र पहनकर भारत के महाकाल में मंदिर पूजा की। वामपंथी प्रचंड एक क्रांतिकारी रहे हैं। उनकी पार्टी के नेताओं ने नेपाल के कई मंदिरों को तोड़ा था और जो लोग पूजा करते थे, उन्हें मारा था। उन्होंने कहा कि प्रचंड ने पूरी रणनीति के तहत महाकाल मंदिर में दर्शन किया और इसके पीछे मोदी फैक्टर है।
प्रचंड के दौरे से ठीक पहले नागरिकता बिल को मंजूरी
घिमिरे ने कहा कि प्रचंड के नेपाल की सत्ता में बने रहने और देश में राजनीतिक सफलता के लिए पीएम मोदी का साथ बहुत ही जरूरी है। प्रचंड पद संभालने के 5 महीने बाद भारत आए हैं। प्रचंड के भारत दौरे की शुरुआत से मात्र 1 घंटे पहले ही नेपाल के राष्ट्रपति ने नागरिकता कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी। इसके लिए प्रचंड ने संसद को किनारे कर दिया और कैबिनेट से इसको मंजूरी दिलवाई थी। ऐसा पीएम प्रचंड ने भारत सरकार को खुश करने के लिए किया था।
इस नागरिकता कानून में बदलाव के बाद अब भारत की किसी महिला के नेपाली पति से शादी करने पर उसे तुरंत राजनीतिक अधिकार के साथ नेपाल की नागरिकता मिल जाएगी। इससे बिहार, यूपी और उत्तराखंड की महिलाओं को फायदा होगा। भारत इसकी लंबे समय से मांग कर रहा था जिसका नेपाल के तराई इलाके में रहने वाले मधेशियों को होगा। उन्होंने कहा कि इस कदम के जरिए प्रचंड ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह अपनी पुरानी गलती को सुधार रहे हैं और भारत की बात को अब तवज्जो देते हैं।
प्रचंड पर क्यों लटक रही है जेल जाने की तलवार?
घिमिरे ने कहा कि प्रचंड के ऐसा करने के पीछे उनका एक बड़ा डर है। दरअसल, 16 साल पहले नेपाल में एक दशक तक चलने वाले हिंसक माओवादी आंदोलन का अंत हुआ था। साल 1996 से 2006 के बीच हुई इस हिंसा में नेपाल के 17 हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद भारत की मध्यस्थता से माओवादियों और लोकतंत्र समर्थक दलों के बीच समझौता हुआ था। पीएम मोदी ने इस डील की प्रशंसा की थी। नेपाली विश्लेषक ने बताया कि साल 2006 में हुई शांति डील में यह कहा गया था कि मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वाली जांच होगी और उन्हें दंडित किया जाएगा।
साभार : नवभारत टाइम्स
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