भारत सरकार ने बढ़ाए कदम 2030 के भारत की ओर
2030 के भारत के सतत विकास एजेंडा पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कथित शब्द इस प्रकार हैं,
“एजेंडा 2030 के पीछे की हमारी सोच जितनी ऊँची है हमारे लक्ष्य भी उतने ही समग्र हैं। इनमें उन समस्याओं को प्राथमिकता दी गई है, जो पिछले कई दशकों से अनसुलझी हैं और इन लक्ष्यों से हमारे जीवन को निर्धारित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के बारे में हमारे विकसित होती समझ की झलक मिलती है। मानवता के 1/6 हिस्से के सतत् विकास का विश्व और हमारे सुंदर पृथ्वी के लिए बहुत गहरा असर होगा।” – श्री नरेन्द्र मोदी
हम विश्व को एक नवीन रूप प्रदान करने के मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की सोचने की समझ और नजरिये में एक क्राँतिकारी बदलाव आएगा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से सतत् विकास के 17 लक्ष्यों की ऐतिहासिक योजना शुरू की है जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्न, समर्थ, सक्षम, समतावादी और संरक्षित विश्व की रचना करना है, जिसमे भारत भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। #2030 के भारत के सतत विकास एजेंडा के अंतर्गत ऐसे विषय शामिल किए गए हैं जिनसे हम बहुत समय से जूझ रहे हैं जैसे गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य, जलवायु, अन्य प्राणियों, जल और पेड़-पौधों की सुरक्षा, आर्थिक वृद्धि, औद्योगिक विकास तथा अन्य। इस एजेंडा पर कार्य करने के लिए केवल आर्थिक वृद्धि को महत्व देने से बात नहीं बनेगी, बल्कि निष्पक्ष और अधिक समतामूलक समाज तथा अधिक संरक्षित एवं संपन्न पृथ्वी पर भी ध्यान देना होगा। इसके साथ ही, 2030 के एजेंडा का मूल मंत्र है: ‘कोई पीछे न छूटे’। यह सार्वभौमिकता का सिद्धांत है। विकास को अपने सभी आयामों में सभी के लिए, हर जगह समावेशी होना चाहिए और उसका निर्माण हर किसी की विशेषकर गरीब और लाचार लोगों की भागीदारी से होना चाहिए। भारत के राष्ट्रीय विकास लक्ष्य के लिए “सबका साथ सबका विकास” नीतिगत पहल, सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है और भारत दुनियाभर में इन सभी लक्ष्यों में सफलता निर्धारित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इन दिनों भारत में संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों को स्थानीय स्वरूप में ढ़ालने के लिए राज्य सरकारों को समर्थन दे रहा है ताकि राज्य स्तर पर विकास की प्रमुख चुनौतियों का समाधान हो सके।
आइये, हम एक-एक करके इन लक्ष्यों पर बात करते हैं, जिन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी भागीदारी भी आवश्यक है।
1 शून्य
गरीबी
हर कोई आकर उस मजार पर चादर चढ़ा गया
जिसके बहार बैठा एक फकीर ठण्ड से मर गया
जी हाँ, यह कड़वा है पर सच है। आज हमारे देश के हालात कुछ ऐसे ही हैं। आस्था और अंधविश्वास से भरे लोग सिर्फ खुद के प्रति प्यार रखने लगे हैं, दूसरों के काम आना तो अब खयालों में ही सच लगता है। आज भी हमारे देश में हजारों-लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास तन पर पहनने के लिए कपड़ा और खाने के लिए रोटी नहीं है। अगर हम अपनी सोच में बदलाव लाकर मंदिर-मस्जिद में इतना चढ़ावा चढाने के बजाये गरीबों के काम आने लगे तो कुछ ही सालों में गरीबी और लाचारी का आँकड़ा आधे से भी कम हो जायेगा।
गरीबी सिर्फ आमदनी या संसाधनों की सुलभता का अभाव नहीं है। यह शिक्षा के अवसरों और सामाजिक भेदभाव में बढ़ोतरी के लिए भी जवाबदार है। गरीबी के हर रूप को जड़ से मिटा देना भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का मूल मंत्र है और #2030 के भारत के सतत विकास का पहला लक्ष्य है। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि सभी लोगों खासकर गरीब तथा लाचारी की स्थिति में जी रहे लोगों को आर्थिक संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों पर सामान अधिकार और कार्य करने कि शक्ति का नवाचार मिले। इसके साथ ही, बुनियादी सेवाओं, उपयुक्त नई टेक्नोलॉजी तथा सूक्ष्म वित्त सहित वित्तीय सेवाएँ सुलभ करना भी इस लक्ष्य का हिस्सा है। भारत सरकार की अनेक प्रगतिशील नीतियाँ हैं। इनमें विश्व की सबसे बड़ी रोजगार ग्यारंटी योजना, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार ग्यारंटी योजना और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना शामिल हैं।
2 शून्य भुखमरी
ये तीन शब्द जीवन का आधार माने जाते हैं: रोटी, कपड़ा और मकान, जिसमें से सबसे जरुरी एक इंसान के लिए रोटी ही है। आज अगर दुनियाभर की बात की जाये तो हर व्यक्ति का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन होने के बावजूद हर दस में से दो व्यक्ति भूखे रह जाते हैं। यह इसलिए क्योंकि हम भोजन के महत्व को समझना ही नहीं चाहते हैं। एक किसान को अनाज उगाने में महीनों का समय और परिश्रम लगता है और हम हैं कि क्षण भर नहीं लगाते उसे थाली में छोड़ देने में। इस बात पर मैं बहुत बड़ी बात कहना चाहूँगा कि रोटियाँ सिर्फ उन्हीं कि थालियों से कूड़े तक जाती हैं, जिन्हें ये नहीं पता होता कि भूख क्या होती है। ये कटु है पर सत्य हैं।
#2030 के भारत के सतत विकास के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक लक्ष्य है शून्य भुखमरी। भुखमरी तथा कुपोषण मिटाना, विशेषकर गरीबों तथा लाचार लोगों को पौष्टिक तथा पर्याप्त भोजन सुलभता से प्राप्त कराना इस लक्ष्य का आधार है। इसके अंतर्गत कुपोषण को हर रूप से मिटाने के लिए 5 वर्ष से छोटे बच्चों में बौनेपन और क्षीणता के बारे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्य 2025 तक हासिल करना शामिल है। इसके अलावा किशोरियों, गर्भवती एवं स्तनपान कराती माताओं तथा वृद्धजनों की पोशाहार की जरूरतों को पूरा करना, खेती की उत्पादकता और खासकर महिलाओं, मूल निवासियों, पारिवारिक किसानों, चरवाहों और मछुआरों सहित लघु आहार उत्पादकों की आमदनी को दोगुना करना, टिकाऊ आहार उत्पादन प्रणालियाँ सुनिश्चित करना और खेती की ऐसी जानदार विधियाँ अपनाना जिनसे उत्पादकता औऱ पैदावार बढ़े, पारिस्थितिक प्रणालियों के संरक्षण में मदद मिले, जलवायु परिवर्तन, कठोर मौसम, सूखे, बाढ़ और अन्य आपदाओं के अनुरूप ढ़लने की क्षमता मजबूत हो और जिनसे जमीन एवं मिट्टी की गुणवत्ता में निरंतर सुधार हो। इस लकया में खाद्य जिन्स बाजार और उनके डेरिवेटिव्स के सही ढ़ंग से संचालन के उपाय अपनाना और सुरक्षित खाद्य भंडार सहित बाजार की जानकारी समय से सुलभ कराना भी शामिल है जिससे खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव को सीमित करने में सहायता मिल सके।
3 उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली
"जो व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य का आनंद लेता है, वह अमीर तथा समृद्ध होता है, भले ही वह यह बात न जानता हो।"
यहाँ कथनार्थ यह है कि खराब स्वास्थ्य केवल उस व्यक्ति विशेष की खुशहाली पर ही असर नहीं डालती, बल्कि परिवार तथा समाज पर भी बोझ बन जाता है, उन्हें कमजोर बना देता है और उनकी क्षमता का ह्रास कर देता है। अच्छा स्वास्थ्य न सिर्फ जीने के लिए जरुरी है, बल्कि यह आर्थिक वृद्धि तथा सम्पन्नता को भी बल देता है, जो खुशहाल जीवन का परिणाम है।
#2030 के भारत के सतत विकास का उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली है। वर्ष 2000 के बाद से हमारे देश में एचआईवी/एड्स, मलेरिया, तथा टीबी जैसे संक्रामक रोगों पर हमने काफी काबू पाया है और यह उम्दा पहल निरंतर जारी है, जिसमें भारत रोगों के नए उपचारों, टीकों तथा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी कि खोज में जबर्दस्त प्रगति कर रहा है। 2030 तक हानिकारक रसायनों, वायु, जल और मृदा प्रदूषण तथा दूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों में भारी कमी करना और सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और घायलों की संख्या आधी से भी कम करना इस लक्ष्य का आधार है। इसके साथ ही, मातृ मृत्यु अनुपात घटाकर प्रति एक लाख जीवित शिशु प्रसव पर 70 से भी कम करना, नवजात शिशुओं और पांच साल कम उम्र में बच्चों में निरोध्य मौतें कम करना, वित्तीय जोखिम संरक्षण सहित सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना, उत्तम आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ कराना तथा सभी के लिए निरापद, असरदार, उत्तम और किफायती जरूरी दवाएँ और टीके सुलभ कराना भी 2030 के इस लक्ष्य में शामिल है।
4 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
शिक्षा में वह ताकत होती है जिससे पूरी दुनिया को बदला जा सकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सतत विकास लक्ष्य की बुनियाद है। आज भारत में पहले से अधिक ज्ञान तथा शिक्षा का भंडार है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति उसका लाभ नहीं उठा पाता है। भारत सरकार ने "स्कूल चले हम" की पहल करके सभी स्तरों पर शिक्षा की सुलभता को बढ़ाने तथा स्कूल्स में भर्ती की दरों में वृद्धि करने पर बहुत प्रगति की है और अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सतत विकास एजेंडा के 2030 के भारत के इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि 2030 तक भारत में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो और ऐसे युवाओं तथा वयस्कों कि सँख्या में वृद्धि हो जिनके पास रोजगार, तकनीकी ज्ञान तथा व्यावसायिक कौशल हो।
5 लैंगिक समानता
शिक्षा में वह ताकत होती है जिससे पूरी दुनिया को बदला जा सकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सतत विकास लक्ष्य की बुनियाद है। आज भारत में पहले से अधिक ज्ञान तथा शिक्षा का भंडार है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति उसका लाभ नहीं उठा पाता है। भारत सरकार ने "स्कूल चले हम" की पहल करके सभी स्तरों पर शिक्षा की सुलभता को बढ़ाने तथा स्कूल्स में भर्ती की दरों में वृद्धि करने पर बहुत प्रगति की है और अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सतत विकास एजेंडा के #2030 के भारत का चौथा लक्ष्य देश के प्रत्येक व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराना है जो देश की आर्थिक व्यवस्था सुधरने में क्रन्तिकारी साबित होगा। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि 2030 तक भारत में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो और ऐसे युवाओं तथा वयस्कों कि सँख्या में वृद्धि हो जिनके पास रोजगार, तकनीकी ज्ञान तथा व्यावसायिक कौशल हो। इसके साथ ही, सभी बच्चों को प्रारंभ में ही उत्तम विकास, देखभाल और प्राइमरी पूर्व शिक्षा सुलभ हो जिससे वे प्राइमरी शिक्षा के लिए तैयार हो सकें, सभी को किफायती और गुणवत्तापूर्ण तकनीकी, व्यावसायिक और स्नातक/स्नातकोत्तर शिक्षा, विश्वविद्यालय सहित बराबरी के आधार पर सुलभ हो, शिक्षा में लड़कियों और लड़कों के बीच विषमता पूरी तरह समाप्त करना और विकलांग व्यक्तियों, मूल निवासियों और संकट की परिस्थितियों में घिरे बच्चों सहित लाचार लोगों के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के सभी स्तरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना, युवा पुरुषों तथा महिलाओं सहित काफी बड़े अनुपात में वयस्क साक्षर हो जाएं और गणना करना सीख लें आदि शामिल है।
6 स्वच्छ जल तथा स्वच्छता
पृथ्वी
की सतह के 70% हिस्से में पानी है, जिसमें से 97% खारा और 3% ताजा पानी है। स्वच्छ
पेयजल यानी पीने योग्य पानी मानव जीवन के लिए आवश्यक है। सौभाग्य से, हमारे पास समुद्र,
नदी, महासागर और बारिश सहित पानी के कई स्रोत हैं। लेकिन मानवीय लापरवाही के कारण पृथ्वी
पर मौजूद पानी प्रति क्षण प्रदूषित हो रहा है।
भारत
में 7.6 करोड़ की आबादी को स्वच्छ जल सहज उपलब्ध नहीं है, जो पूरी दुनिया के देशों
में स्वच्छ जल से वंचित रहने वाले लोगों की सर्वाधिक आबादी है। इतना ही नहीं विशेषज्ञों
ने इस आपदा के और गंभीर होने की आशंका जताई है, क्योंकि भारत में 73 फीसदी भूमिगत जल
का दोहन किया जा चुका है। जिसका मतलब है कि हमने भरण क्षमता से अधिक जल का उपयोग कर
लिया है। स्वच्छ जल के सबसे बड़े स्रोत छोटी नदियां और जलधाराएं सूख चुकी हैं, जबकि
बड़ी नदियां प्रदूषण से जूझ रही हैं। इन सबके बावजूद हम कुल बारिश का सिर्फ 12 फीसदी
जल ही संरक्षित कर पाते हैं।
आज
हालात ऐसे हैं कि हर वर्ष लाखों लोगों और बच्चों की मौत अपर्याप्त जल आपूर्ति, स्वच्छता
और साफ-सफाई के कारण उत्पन्न बीमारियों के कारण होती है। नदियों के किनारे बसे शहरों
की स्थिति तो और भी बदतर है। इन नदियों में कल-कारखानों और स्थानीय निकायों द्वारा
फेंका गया रासायनिक कचरा, मल-मूत्र और अन्य अवशिष्ट उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं। इन
नदियों के जल का उपयोग करने वाले लोग कई गंभीर रोगों का शिकार हो रहे हैं। इससे बचने
के लिए लोगों को नदियों को दूषित होने से बचाने के लिए जागरूक होना होगा। उन्हें यह
समझना होगा कि उनके द्वारा नदियों तथा तालाबों में फेंका गया कूड़ा-कचरा उनके ही पेयजल
को दूषित कर रहा है। कल-कारखानों के मालिकों को इसके लिए बाध्य करना होगा कि वे प्रदूषित
और रासायनिक पदार्थों को नदियों में कतई न जाने दें। यदि कोई ऐसा करता पाया जाए, तो
उसे कठोर दण्ड दिया जाए। जब तक हम जल की महत्ता को समझते हुए नदियों को साफ रखने की
मुहिम का हिस्सा नहीं बनते हैं, तब तक नदियों को कोई भी सरकार साफ नहीं रख सकती है।
सरकार स्वच्छ भारत अभियान से मिले जनता के भरपूर समर्थन के समान ही स्वच्छ जल लक्ष्य
पर विजय प्राप्त कर सकती है।
#2030
के भारत के सतत विकास के विभिन्न लक्ष्यों में से एक है स्वच्छ जल तथा स्वच्छता। स्वच्छता
में सुधार करना भारत सरकार की एक सराहनीय पहल है और इस दिशा में उसने अनेक प्रमुख अभियान
शुरु किए हैं जिनमें स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम और गंगा
संरक्षण के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम शामिल है। इन अभियानों के तहत भारत में वर्ष
2030 तक नदियों तथा अन्य सभी जल स्त्रोतों का जल शुद्ध हो जाएगा, इसके साथ ही स्वच्छ
भारत अभियान नए आयाम छुएगा।
7 सस्ती तथा प्रदुषण-मुक्त ऊर्जा
ऊर्जा वह सुनहरी डोर है जिसके चलते जीवन यापन करना लगभग बहुत आनंदमय और आसान हो गया है। आज ऊर्जा के क्षेत्र में भारत नई नई सफलताएँ और नए मुकाम हासिल कर रहा है। ऊर्जा क सुगम साधनों के चलते आधुनिक तकनीकियों को अपनाने में काफी वृद्धि हुई है, जो हमारे देश के लिए दृढ़ता का विषय है। आज दुनिया के सामने मौजूद लगभग हर चुनौती और अवसर, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, अनाज उत्पादन, नौकरी या बढ़ती आमदनी में ऊर्जा प्रमुख भूमिका निभाती है। सतत ऊर्जा अवसर पैदा करती है, साथ ही जीवन, अर्थव्यवस्था और पृथ्वी का कायाकल्प करती है।
हमारे दैनिक जीवन में खाना पकाने, बिजली उत्पन्न करने, कारखानों को चलाने तथा वाहनों के लिए ऊर्जा का अत्यंत महत्व है, जिसे हम ज्यादातर ईंधनों से प्राप्त करते हैं। पृथ्वी में संचित कोयला तथा पेट्रोलियम लम्बे समय से हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते रहे हैं। ये अनवीकरणीय स्त्रोत अभी भी धरती की गहराई में विद्यमान हैं। लेकिन एक बार इनका प्रयोग कर लेने के बाद पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता है। कोयला तथा पेट्रोलियम जैसे जीवाश्मी ईंधन के निरंतर उपयोग से भविष्य में ये समाप्त हो जाएंगे, साथ ही ये प्रदुषण का कारण भी है। इस हेतु यह आवश्यक है कि हम ऐसी ऊर्जा का उपयोग करें जो नवीकरणीय है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप से सभी ऊर्जाओं का कारण बनती है। इसी ऊर्जा का रूपांतरण अन्य सभी ऊर्जाओं की आधारशिला है। पवन, जल, सौर, बायोमास तथा भूतापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा कभी खत्म नहीं होती और प्रदूषण मुक्त होती है। जिस प्रकार हमारी आवश्यकताएं निरंतर बढ़ रही हैं, इन्हें पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग में वृद्धि अति आवश्यक है ताकि भविष्य में ऊर्जा संकटों का सामना न करना पड़े।
#2030 के भारत
के सतत विकास
के सांतवे लक्ष्य
में यह सुनिश्चित
किया गया है
कि 2030 में सम्पूर्ण
भारत में सस्ती,
विश्वसनीय और आधुनिक
ऊर्जा सेवाओं की
सुलभता सुनिश्चित की जाये,
वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में
नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी
बढ़ाई जाये, ऊर्जा
किफायत में सुधार
की वैश्विक दर
दोगुनी की जाये,
और प्रदूषण मुक्त
ऊर्जा अनुसंधान और
प्रौद्योगिकी सुलभ कराने
में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
बढ़ाया जाये।
8 उत्कृष्ट कार्य तथा आर्थिक वृद्धि
2030 के भारत के सतत विकास के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक है उत्कृष्ट कार्य तथा आर्थिक वृद्धि। उत्कृष्ट कार्य का सीधे तौर पर आशय अच्छे गुण से युक्त कार्य से है। इस लक्ष्य का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सीरीज के पॉइंट 4 से नाता है, क्योंकि उत्कृष्ट कार्य करने के लिए कहीं न कहीं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आवश्यकता होती ही है।
यदि हम इस विषय के इतिहास की बात करें, तो दुनियाभर में वार्षिक आर्थिक वृद्धि सन् 2000 में 3% थी, जो घटकर 2014 में 1.3% रह गई। वैश्विक बेरोजगारी 2007 में 17 करोड़ से बढ़ते-बढ़ते 2012 में करीब 20.2 करोड़ हो गई, जिसमें से करीब 7.5 करोड़ युवतियां और युवक थे। इस धीमी और असामान्य प्रगति को देखते हुए प्रशासन ने यह निश्चय किया कि गरीबी मिटाने की हमारी आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर नए सिरे से सोचकर नए साधनों का सहारा लेना होगा।
सतत् विकास एजेंडा का मूल मंत्र है ‘कोई पीछे छूटने न पाए’। साथ ही ‘सभी को मिले काम, ऐसा हो अर्थव्यवस्था में सुधार’ मोटो को अपनाकर इस लक्ष्य के लिए प्रशासन प्रतिबद्ध है। 10 और 24 वर्ष की आयु के बीच 36 करोड़ से अधिक युवाओं के साथ भारत में दुनिया की सबसे युवा आबादी निवास करती है। इस डेमोग्राफिक प्रॉफिट के उपयोग पर ही देश के लिए संपन्न और जानदार भविष्य की रचना का सारा दारोमदार है। किन्तु उच्चतर शिक्षा में भारत का सिर्फ 23% का सकल भर्ती अनुपात दुनिया में सबसे कम अनुपातों में से एक है। भारत में श्रम शक्ति हर वर्ष 80 लाख से अधिक बढ़ जाने का अनुमान है और देश को अब से लेकर 2050 तक 28 करोड़ रोजगार जुटाने की जरूरत होगी, जिसके परिणाम स्वरुप उपरोक्त मौजूदा स्तरों में एक-तिहाई वृद्धि होगी।
उत्कृष्ट
कार्य तथा आर्थिक
वृद्धि लक्ष्य का उद्देश्य 2030 तक हर
जगह सभी पुरुषों
और महिलाओं के
लिए पूर्ण एवं
उत्पादक रोजगार
हासिल करना, युवाओं
के लिये रोजगार
के अवसरों में
वृद्धि करना, क्षेत्रों, आयु
समूहों और लिंग
के आधार पर
असमानता को कम
करना, अनौपचारिक रोजगारों
में कमी करना,
सभी श्रमिकों के
लिये सकुशल और
सुरक्षित कार्य वातावरण को
बढ़ावा देना है।
इसके अंतर्गत यह
भी सुनिश्चित किया
गया है कि
#2030 के भारत में
अक्षम या अपंग
व्यक्तियों सहित सभी
लोगों को समान
कार्य के लिए
समान वेतन दिया
जाए और साथ
ही बाल श्रम
को भी खत्म
किया जाए। राष्ट्रीय कौशल विकास
मिशन, दीन दयाल
उपाध्याय अंत्योदय योजना,
राष्ट्रीय सेवा
योजना और महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ग्रामीण
रोजगार गारंटी योजना जैसे
सरकार के कुछ
प्रमुख कार्यक्रमों का उद्देश्य सभी
के लिए उत्कृष्ट
कार्य जुटाना है।
9 उद्योग, नवाचार तथा बुनियादी सुविधाएँ
औद्योगिक
विकास भारत का
एक अत्यंत महत्वपूर्ण
दिशा निर्धारक रहा
है। भाप इंजन
से लेकर आज
तक की वास्तव में
वैश्विक उत्पादन
श्रृंखलाओं और प्रक्रियाओं
तक उद्योगों ने
हमारी अर्थव्यवस्थाओं को
बदला है और
हमारे समाज में
बड़े बदलाव लाने
में सहायता की
है। 2030 के
भारत के सतत
विकास के इस
लक्ष्य का मुख्य
उद्देश्य क्षेत्रीय तथा सीमाओं
के आर-पार
बुनियादी सुविधाओं सहित गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय,
टिकाऊ तथा जानदार
बुनियादी सुविधाओं का विकास
करना है जिससे
आर्थिक विकास हो और
मानव कल्याण
को सहारा मिले
तथा रोजगार और
सकल घरेलू उत्पाद में
राष्ट्रीय परिस्थितियों
के अनुसार उद्योग
की हिस्सेदारी
में बहुत अधिक
वृद्धि की जाए।
वहीँ दूसरी और
सरकार के मेक
इन इंडिया और
स्टार्टअप इंडिया
जैसे प्रमुख प्रयासों
तथा पंडित दीनदयाल
उपाध्याय श्रमेव
जयते कार्यक्रम के
बल पर नवाचार
और सतत् औद्योगिक
एवं आर्थिक विकास
को गति मिल
रही है।
10 असमानताओं में कमी
नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद भी वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि प्रत्येक क्षेत्र में असमानता ही देखने को मिलती है। कम होने के बजाए यह दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है जो एक दयनीय मुद्दा है। यदि हम गतवर्षों की बात करें तो 2014 में दुनिया में सबसे अमीर एक प्रतिशत जनसंख्या के पास दुनिया की 48% दौलत थी, जबकि सबसे निचले स्तर पर मौजूद 80% लोगों के पास कुल मिलाकर दुनिया की सिर्फ 6% दौलत थी। यह असंतुलन तब और भी स्पष्ट हो जाता है, जब हम देखते हैं कि सिर्फ 80 व्यक्तियों के पास इतनी दौलत है जितनी दुनिया भर में सबसे कम आय वाले 3.5 अरब लोगों के पास है। औसत आय में असमानता 1990 और 2010 के बीच विकासशील देशों में सिर्फ 11% ही बढ़ी। भारत के लिए आय में असमानता का गिनि कोएफिशिएंट 2010 में 36.8% था, जो घटकर 2015 में 33.6% रह गया।
सबसे कम विकसित देश, भूमि से घिरे विकासशील देश और छोटे द्वीपीय विकासशील देश गरीबी कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। किन्तु इन देशों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं तथा अन्य परिसंपत्तियों की सुलभता में भारी विषमताएं हैं। देशों के बीच आय में असमानता भले ही कम हुई हो, लेकिन देशों के भीतर असमानता लगातार बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार 2000 के दशक के अंतिम वर्षों में दक्षिण एशिया में सबसे दौलतमंद जनसंख्या के बच्चों के लिए प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने की संभावना सबसे गरीब वर्गों के बच्चों की तुलना में दोगुनी अधिक थी। लैटिन अमरीका और पूर्व एशिया में सबसे गरीब परिसंपत्तियों वाले वर्गों में पांच वर्ष की आयु से पहले ही बच्चों की मृत्यु की आशंका सबसे अमीर वर्गों के बच्चों की तुलना में तीन गुना अधिक है।
#2030 के सतत
विकास के इस
लक्ष्य के अंतर्गत
यह संकल्प लिया
गया है कि
असमानता कम करने
के लिए नीतियां
सिद्धांत रूप में
सार्वभौमिक होनी चाहिए
जिनमें लाभों से वंचित
और हाशिए पर
जीती जनसंख्या
की जरूरतों पर
ध्यान दिया
जाए। समावेशन को
सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक
क्षेत्रों में भी
सभी आयु, लिंग,
धर्म और जातीय
समाजों में सक्रिय
रूप से बढ़ावा
दिया जाना चाहिए
जिससे देशों के
भीतर समानता की
परिस्थितियां पैदा हो
सकें। जनधन-आधार-मोबाइल कार्यक्रम पर
भारत सरकार जितना
बल दे रही
है, उसका उद्देश्य समावेशन,
वित्तीय सशक्तिकरण
और सामाजिक सुरक्षा
की एक समग्र
रणनीति है। ये
सभी प्राथमिकताएं 2030 तक
सबके लिए समानता
हासिल करने और
सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक
समावेशन को प्रोत्साहित करने के
उद्देश्यों के
अनुरूप हैं। इस
लक्ष्य के चलते
यह भी सुनिश्चित
किया गया है
कि भारत वर्ष
के प्रत्येक व्यक्ति
को अन्य व्यक्ति
के समान ही
अधिकार प्राप्त हो। इसके
साथ ही विकलांगता,
जातीयता, मूल धर्म,
आर्थिक अथवा किसी
अन्य भेदभाव के
बिना प्रत्येक व्यक्ति
के लिए समान
अवसर सुनिश्चित करना
तथा परिणाम की
असमानताएँ कम करना
भी शामिल है।
11 संवहनीय शहर तथा समुदाय
आज के दौर में हर इंसान गाँव की गलियों को छोड़ शहरों की सड़कों पर भटकना चाहता है, गाँव की सुकून भरी जिंदगी को छोड़ शहरों में दिनभर की थकान पाना चाहता है, कोयल की कूक और चिड़ियों की चहचहाहट को छोड़ भागती गाड़ियों का शोर सुनना चाहता है, मिट्टी की भीनी खुशबु को छोड़ कारखानों और गाड़ियों के धुएँ को अपनाना चाहता है, पेड़ों से मिलने वाली ताजा हवा को छोड़ प्रदुषण भरी साँसें लेना चाहता है। आधा मानव समुदाय यानी 3.5 अरब लोग आज शहरों में रहते हैं और अनुमान है कि 2030 तक 10 में से 6 व्यक्ति शहरों के निवासी होंगे। शहरों में बस्ती जिंदगियों का एक कारण यह भी है कि शहर, संवहनीय विकास की बुनियाद हैं। वहीं पर विचार, वाणिज्य, विज्ञान और उत्पादकता पनपते हैं। शहरों में लोगों को आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सम्पन्नता के अवसर मिलते हैं किंतु यह ऐसे संपन्न शहरों में ही संभव है, जहाँ लोगों को उत्कृष्ट रोजगार मिल सके तथा जहाँ भूमि संसाधनों पर बढ़वार का बोझ न हो।
दुनिया के शहरों ने पृथ्वी की सिर्फ 3% जमीन घेर रखी है लेकिन ऊर्जा की कुल खपत का 60-80% और पृथ्वी का 75% कार्बन उत्सर्जन शहरों में होता है। आने वाले दशकों में करीब 85% शहरी विस्तार विकासशील देशों में होगा। हमारी तेजी से फैलती शहरी दुनिया में भीड़ बढ़ रही है, बुनियादी सेवाओं का अभाव है, उपयुक्त आवास की कमी है और बुनियादी ढांचा कमजोर हो रहा है, जिसके कारण ताजे पानी की आपूर्ति, सीवेज, रहन-सहन के माहौल और जन स्वास्थ्य पर दबाव पड़ रहा है। दुनिया में 30% शहरी जनसंख्या तंग बस्तियों में रहती है और सहारा के दक्षिण अफ्रीकी देशों में आधे से अधिक शहरी निवासी तंग बस्तियों में रहते हैं। यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ भी शहरीकरण तेजी से हो रहा है। 2001 और 2011 के बीच देश की शहरी जनसंख्या में 9.1 करोड़ की वृद्धि हुई। अनुमान है कि 2030 तक भारत में एक-एक करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले 6 मेगा शहर होंगे।
सतत
विकास के संवहनीय
शहर तथा समुदाय
लक्ष्य के अंतर्गत
भारत सरकार के
स्मार्ट सिटी
मिशन, जवाहरलाल नेहरू
राष्ट्रीय शहरी
नवीकरण मिशन और
अटल पुनर्जीवन एवं
शहरी कायाकल्प
मिशन शहरी क्षेत्रों
में सुधार की
चुनौती का सामना
करने के लिए
कार्य कर रहे
हैं। प्रधानमंत्री आवास
योजना का उद्देश्य 2022 तक सबके
लिए आवास का
लक्ष्य हासिल
करना है। इसके
साथ ही इस
लक्ष्य के अन्य
उद्देश्य सबके लिए
उपयुक्त, सुरक्षित और सस्ते
आवास तथा बुनियादी
सेवाओं की सुलभता
सुनिश्चित करना, तंग बस्तियों
की स्थिति सुधारना,
सुरक्षित, सस्ती, सुलभ और
संवहनीय परिवहन प्रणालियों तक
पहुँच जुटाना, सार्वजनिक
परिवहन के विस्तार
से सड़क सुरक्षा
सुधारना, महिलाओं, बच्चों, विकलांगों
और वृद्धजनों तथा
लाचारी की स्थिति
में जीते लोगों
की जरूरतों पर
विशेष ध्यान देना,
देश की सांस्कृतिक
एवं प्राकृतिक धरोहर
के संरक्षण एवं
सुरक्षा के प्रयास
मजबूत करना, आदि
शामिल हैं।
12 संवहनीय उपभोग तथा उत्पादन
हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है, इसका भविष्य बड़ा ही दयनीय है, जिसका कारण प्रत्यक्ष रूप से मानव समुदाय है। यदि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। हालात ऐसे हैं कि हर वर्ष कुल आहार उत्पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है। एक अरब से अधिक लोगों को ताजा पानी सुलभ नहीं हो पाता है। दुनिया में 3% से भी कम पानी ताजा तथा पीने लायक है और उसमें से 2.5% अंटार्कटिक, आर्कटिक और ग्लेशियर्स में जमा हुआ है। इस प्रकार सभी पारिस्थितिकी तथा ताजे पानी की जरूरतों के लिए हमें सिर्फ 0.5% का ही सहारा है। इसके साथ ही कारखानों के उड़ते धुएँ, लगातार कटते पेड़, नदियों और महासागरों का दूषित होता जल, रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक, रोज का बर्बाद होता अनाज और ऐसे ही कई विषय प्रकृति को सता रहे हैं जो बेहद गंभीर हैं।
संवहनीय उपभोग और उत्पादन का आशय संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्साहन देना, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना, सबके लिए बुनियादी सेवाएं, प्रदूषण रहित और उत्कृष्ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्तापूर्ण जीवन की सुलभता प्रदान करना है। इसके फलस्वरूप विकास योजनाओं को साकार करने में सहायता मिलती है, भविष्य की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्पर्धा क्षमता मजबूत होती है और गरीबी में कमी आती है।
सतत्
विकास तभी हासिल
किया जा सकता
है, जब हम
न सिर्फ अपनी
अर्थव्यवस्थाओं
में वृद्धि करें,
बल्कि उस प्रक्रिया
में बर्बादी को
भी कम से
कम करें। राष्ट्रीय जैव ईंधन
नीति और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा
निधि सरकार की
कुछ प्रमुख योजनाएं
हैं, जिनका उद्देश्य संवहनीय
खपत और उत्पादन हासिल
करना तथा प्राकृतिक
संसाधनों के कुशल
उपयोग का प्रबंधन
करना है। #2030 के
भारत के संवहनीय
उपभोग और उत्पादन का
उद्देश्य कम
साधनों से अधिक
और बेहतर लाभ
उठाना, संसाधनों का उपयोग,
विनाश और प्रदूषण
कम करके आर्थिक
गतिविधियों से जन
कल्याण के
लिए कुल लाभ
बढ़ाना और जीवन
की गुणवत्ता
में सुधार करना
है। इसके साथ
ही उपभोक्ता स्तरों
पर भोजन की
प्रति व्यक्ति बर्बादी
को आधा करना
और फसल कटाई
के बाद होने
वाले नुकसान सहित
उत्पादन और आपूर्ति
श्रृंखलाओं में खाद्य
पदार्थों की क्षति
को कम करना,
स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार
रसायनों और उनके
कचरे का उनके
पूरे जीवन चक्र
में पर्यावरण की
दृष्टि से सुरक्षित
प्रबंधन हासिल करना, वायु,
जल और मिट्टी
में उन्हें छोड़े
जाने में उल्लेखनीय
कमी करना ताकि
मानव स्वास्थ्य और
पर्यावरण पर उनका
विपरीत प्रभाव कम से
कम हो। इसके
साथ ही 2030 तक
रिसाइक्लिंग और दोबारा
इस्तेमाल के जरिए
कचरे की उत्पत्ति
में उल्लेखनीय कमी
करना भी इस
लक्ष्य के अंतर्गत
सुनिश्चित किया गया
है।
13 जलवायु कार्रवाई
जीवन का वरदान देने वाली पृथ्वी का आज स्वयं का जीवन संकट में है। विश्व की बढ़ती जनसँख्या, कटते पेड़, दूषित हवा और जल, प्रदुषण, प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ एवं बिगड़ते वातावरण के साथ पृथ्वी की जलवायु में लगातार बदलाव हो रहे हैं। इसका सीधा असर मनुष्य सहित अनेकों प्राणियों के जीवन स्तर पर पड़ रहा है एवं हमें मौसम के बदलते रूप, समुद्र के चढ़ते जल स्तर और कठोर मौसम का सामना करना पड़ रहा है। इस परिवर्तन में सहायक, इंसानी गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, आपदाओं को भी बढ़ा रहा है और उसका सामना करना हमारे जीवन की रक्षा और आने वाली पीढ़ियों के जीवन तथा खुशहाली के लिए अत्यंत आवश्यक है।
1880 से 2012 तक दुनिया के तापमान में औसतन 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। इसका असर यह है कि तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि से अनाज की पैदावार करीब 5% गिर जाती है। वैश्विक स्तर पर गर्म होती जलवायु के कारण 1981 और 2002 के बीच मक्का, गेहूं और अन्य प्रमुख फसलों की पैदावार में 40 मेगाटन प्रतिवर्ष की गिरावट देखी गई। 1901 से 2010 तक दुनिया में समुद्री जल के स्तर में औसतन 19 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई क्योंकि गर्म होते तापमान और हिम के पिघलने से महासागरों का विस्तार हुआ। कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक उत्सर्जन 1990 के बाद से लगभग 50% बढ़ा है। सन् 2000 और 2010 के बीच उत्सर्जन में वृद्धि इससे पहले के तीन दशकों में से प्रत्येक की तुलना में अधिक तेज गति से हुई है। यदि हम भारत की बात करें तो भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है और 5.3% वैश्विक उत्सर्जन करता है। इसके बावजूद 2005 और 2010 के बीच भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 12% की कमी आई। भारत ने अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 2020 तक 20-25% कमी का संकल्प लिया है।
#2030 के भारत
के इस लक्ष्य
के अंतर्गत जलवायु
से जुड़े खतरों
और प्राकृतिक आपदाओं
को सहने तथा
उनके अनुरूप ढ़लने
की क्षमता मजबूत
करना, प्लास्टिक पर
रोक लगाकर नदियों
और महासागरों के
दूषित होने पर
रोक लगाना, जलवायु
परिवर्तन का असर
कम करने, उसके
अनुरूप ढ़लने, प्रभाव घटाने
और जल्दी चेतावनी
देने के लिए
शिक्षा और जागरूकता
उत्पन्न करने की
व्यवस्था में सुधार
करना, आदि शामिल
हैं। भारत सरकार
ने इस समस्या
से सीधे निपटने
के लिए राष्ट्रीय
जलवायु परिवर्तन कार्रवाई योजना
और राष्ट्रीय हरित
भारत मिशन को
अपनाया है। इन
राष्ट्रीय योजनाओं के साथ-साथ सौर
ऊर्जा के इस्तेमाल,
ऊर्जा कुशलता बढ़ाने,
संवहनीय पर्यावास, जल, हिमालय
की पारिस्थितिकी को
सहारा देने तथा
जलवायु परिवर्तन के बारे
में रणनीतिक जानकारी
को प्रोत्साहित करने
के बारे में
अनेक विशेष कार्यक्रम
भी अपनाए गए
हैं।
14 जलीय जीवों की सुरक्षा
हम बेशक थल पर रहते हैं लेकिन महासागरों के हम पर किए जाने वाले परोपकारों का कर्ज चुकता करने के बारे में सोचना भी हमारे लिए कठिन है। महासागरों पर हमारी निर्भरता कल्पना से परे है। इंसान की पैदा की हुई करीब 30% कार्बन डाइऑक्साइड महासागर ग्रहण कर लेते हैं यानी विश्व की गर्म होती जलवायु का असर कम करते हैं। वे दुनिया में प्रोटीन के सबसे बड़े स्रोत भी हैं। हमारी वर्षा का जल, पेयजल, मौसम, जलवायु, तट रेखाएं, हमारा अधिकतर भोजन और जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसकी ऑक्सीजन भी अंतत: सागर से आती है।
पृथ्वी की सतह के तीन चौथाई हिस्से में महासागर हैं जिनमें पृथ्वी का 97% जल है और जो परिमाण के हिसाब से पृथ्वी पर जीने की 99% जगह घेरे हुए हैं। 3 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए समुद्री और तटीय जैव विविधता पर निर्भर हैं। बिना निगरानी के मछली की पकड़ के कारण मछली की बहुत सी प्रजातियां तेजी से गायब हो रही हैं और वैश्विक मछली पालन और उससे जुड़े रोजगार को बचाने तथा पुराने रूप में वापस लाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो रही है। दुनिया के लगभग 40% महासागर प्रदूषण, घटती मछलियों तथा तटीय पर्यावास के क्षय सहित इंसानी गतिविधियों से बुरी तरह प्रभावित हैं।
यदि हम भारत की बात करें तो भारत की एक-तिहाई से अधिक यानी 35% जनसंख्या उसकी विशाल तट रेखा पर रहती है और इसमें से करीब आधे तटीय क्षेत्रों का कटाव हो रहा है। समुद्र तट पर स्थित भारत के 3651 गांवों में 10 लाख से अधिक लोग समुद्र से मछली पकड़ने के रोजगार में लगे हैं। भारत दुनिया में मछली का सबसे बड़ा उत्पादक और अंतर-देशीय मछली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत सरकार की सागर माला परियोजना नीली क्रांति भी कहलाती है। इसके अंतर्गत भारत बंदरगाहों और तटवर्ती क्षेत्रों की हालत सुधारने का काम चल रहा है। समुद्री पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए सरकार ने जलीय पारिस्थितिकी संरक्षण की राष्ट्रीय योजना शुरू की है। भारत तटीय और समुद्री जैव विविधता के संरक्षण पर प्रमुखता से ध्यान दे रहा है।
#2030 के भारत
के जलीय जीवों
की सुरक्षा लक्ष्य
का उद्देश्य समुद्री
मलबे और पोषक
तत्वों के दूषण
सहित जमीन पर
होने वाली गतिविधियों
के कारण हर
तरह के समुद्री
प्रदूषण की रोकथाम
और उसमें उल्लेखनीय
कमी करना, मछली
की पकड़ और
सीमा से अधिक
मछली निकालने, अवैध,
बिना बताए और
बिना किसी नियमन
के मछली पकड़ने
पर रोक लगाना,
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय
कानूनों के अनुरूप
तथा सर्वोत्तम उपलब्ध
वैज्ञानिक सूचना के आधार
पर कम से
कम 10% तटीय और
समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण
करना तथा महासागरों
के अम्लीकरण का
प्रभाव कम से
कम और दूर
करना तथा इसके
लिए सभी स्तरों
पर वैज्ञानिक सहयोग
बढ़ाना शामिल है।
15 थलीय जीवों की सुरक्षा
धरती पर रहने वाले अरबों-खरबों प्राणियों में केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो हर रूप में अन्य से समर्थ, सक्षम, सबल और संपन्न है। जमीन पर मानव तथा अन्य प्राणियों के जीवन के संरक्षण के लिए न सिर्फ थलीय पारिस्थतिकियों का संरक्षण करना बल्कि उन्हें पुनर्जीवित करने तथा भविष्य के लिए उनके संवहनीय उपयोग को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक कार्रवाई आवश्यक है। मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वृक्षों का कटाव और मरुस्थलीकरण सतत् विकास में एक बड़ी चुनौती है और इसने गरीबी से संघर्ष में लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविका पर असर डाला है।
एक प्रजाति के रूप में हमारा भविष्य हमारे सबसे महत्वपूर्ण पर्यावास-जमीन की हालत पर निर्भर करता है। हमारा भविष्य जमीन की पारिस्थतिकी की रक्षा से जुड़ा है फिर भी अब तक 8300 ज्ञात पशु नस्लों में से 8% लुप्त हो चुकी हैं और 22% खोने को हैं। 1.3 हैक्टेयर वन हर वर्ष गायब हो रहे हैं, जबकि खुश्क भूमि के निरंतर विनाश के कारण 3.6 अरब हैक्टेयर इलाका मरुस्थल हो गया है। इस समय 2.6 अरब लोग सीधे तौर पर खेती पर निर्भर हैं, लेकिन 92% खेती की जमीन मिट्टी के विनाश से सामान्य और गंभीर रूप से प्रभावित है।
जमीन और वन सतत विकास के बुनियादी अंग हैं। पृथ्वी की सतह के 30% हिस्से पर वन हैं। ये वन खाद्य सुरक्षा देने के अलावा जलवायु परिवर्तन का सामना करने तथा जैव विविधता की रक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। जीव-जंतुओं, पशु, पौधों और कीटों की कुल संख्या का 80% से अधिक वनों में निवास करता है। इस समय 1.6 अरब लोग भी अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। इंसान की 80% से अधिक खुराक पौधों से आती है। चावल, मक्का और गेहूं 60% ऊर्जा देते हैं। इसके अलावा विकासशील देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहते 80% से अधिक लोग अपने बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारंपरिक औषध वनस्पति पर निर्भर हैं।
यदि
हम भारत की
बात करें तो
भारत में वनाच्छादित
क्षेत्र अब 21% है और
देश के कुल
थलीय क्षेत्र का
करीब 5% संरक्षित क्षेत्र है।
दुनिया की 8% जैव विविधता
भारत में है
जिसमें अनेक प्रजातियां
ऐसी हैं जो
दुनिया में कहीं
और नहीं मिलती
हैं। #2030 के भारत
के थलीय जीवों
की सुरक्षा लक्ष्य
में प्राकृतिक पर्यावास
का विनाश रोकने,
पशुओं की चोरी
और तस्करी समाप्त
करने तथा पारिस्थतिकी
और जैव विविधता
मूल्यों को स्थानीय
नियोजन एवं विकास
प्रक्रियाओं में शामिल
करने के लिए
तत्काल कार्रवाई करना सुनिश्चित
किया गया है।
इसके साथ ही
इस लक्ष्य में
वृक्ष कटाव को
रोकना, मरुस्थलीकरण रोकना, मरुस्थलीकरण
से क्षतिग्रस्त भूमि
सहित क्षतिग्रस्त जमीन
और मिट्टी को
फिर से उपयोग
लायक बनाना तथा
ऐसे विश्व की
रचना करना जहाँ
भूमि का क्षय
न हो, शामिल
किया गया है।
भारत का राष्ट्रीय
वृक्षारोपण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय
समन्वित वन्य जीव
पर्यावास ऐसे मूल
प्रोजेक्ट्स हैं जिनका
उद्देश्य जमीन की
पारिस्थितिकी का संरक्षण
करना है। इसके
साथ ही सरकार
द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर और
प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम की
दो अलग-अलग
योजनाएँ संचालित की गई
हैं जिनका उद्देश्य
देश के दो
सबसे भव्य पशुओं
का संरक्षण करना
है।
16 शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाएँ
अहिंसा सभी धर्मों से बड़ा धर्म है, ऐसा माना जाता है। जी हाँ, मैंने कहा ऐसा माना जाता है, लेकिन क्या सच में हम इसे मानते हैं ? नहीं, हम इसे नहीं मानते हैं, यह कड़वा है पर सच है। आज न जाने कितने ही लोग किसी न किसी रूप में हिंसा के शिकार होते हैं। हिंसा दुनियाभर में देशों के विकास, वृद्धि, खुशहाली और अस्तित्व के लिए सबसे विनाशकारी चुनौती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, शोषण, चोरी और कर वंचना आदि ऐसे कितने ही विषय हैं जो चिंताजनक हैं और किसी न किसी रूप में जनहानि तथा मानहानि को जन्म देते हैं। इंसान को इस जानलेवा बीमारी ने इस कदर जकड़ रखा है कि इनका जड़ से विनाश करना मानव कल्पना से परे है।
दुनियाभर में होने वाली कुल हत्याओं में से 43% में 10 से 29 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं। यदि हम गौर करें तो सहारा के दक्षिण अफ्रीकी देशों में 2010-2012 में मानव तस्करी के 70% शिकार बच्चे थे। गैर-जवाबदेह कानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और लोगों को उनके मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं।
यदि हम भारत की बात करें तो भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का बोझ गतवर्षों में कुछ हल्का हुआ है, जो 2014 में 41.5 लाख से घटकर 2015 में 38.5 लाख रह गया। हमारा देश सरकार के अनेक प्रयासों के बल पर न्यायपालिका को सशक्त करने को प्राथमिकता दे रहा है। इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का प्रगति प्लेटफॉर्म और गाँवों में ग्राम न्यायालयों सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं।
#2030 के भारत
के इस लक्ष्य
के अंतर्गत यह
सुनिश्चित किया गया
है कि देश
में शांति, न्याय
तथा सशक्त संस्थाएँ
स्थापित हों। इस
लक्ष्य में बच्चों
को यातना और
उनके साथ हिंसा
के सभी रूपों,
दुराचार, शोषण और
तस्करी को खत्म
करना, सभी स्थानों
पर हिंसा के
सभी रूपों और
सम्बद्ध मृत्यु दरों में
उल्लेखनीय कमी करना,
धन और हथियारों
के अवैध प्रवाह
में उल्लेखनीय कमी
करना, चोरी हुई
परिसम्पत्तियों को खोज
निकालने और लौटाने
की व्यवस्था सशक्त
करना और हर
प्रकार के संगठित
अपराधों का सामना
करना, भेदभाव-विहीन
कानूनों और नीतियों
को लागू और
प्रोत्साहित करना, भ्रष्टाचार और
रिश्वतखोरी के सभी
रूपों का खात्मा
करना, जन्म पंजीकरण
सहित सबके लिए
कानूनी पहचान देना, सभी
स्तरों पर असरदार,
जवाबदेह और पारदर्शी
संस्थाओं को विकसित
करना, सभी स्तरों
पर माँग के
अनुरूप, समावेशी, भागीदार और
प्रतिनिधित्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित
करना आदि शामिल
हैं।
17 लक्ष्य हेतु भागीदारी
किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को तब तक करना मुश्किल होता है जब तक आप अकेले हो, लेकिन किसी के सहयोग और भागीदारी के साथ किया गया कार्य हमेशा पॉजिटिव रिजल्ट ही देता है। यह मुहावरा इस बात में जान डाल देता है कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाख की। लक्ष्य हेतु भागीदारी ऐसी चुनौती है जो सतत विकास के अन्य सभी 16 लक्ष्यों के बारे में भारत के द्वारा किए जा रहे प्रयासों को एकजुट करती है। एक सफल सतत् विकास एजेंडा के लिए सरकारों, निजी क्षेत्रों और समाज के बीच भागीदारी आवश्यक है।
सतत विकास एजेंडा के लिए महत्वकांक्षी भागीदारी का होना अत्यंत आवश्यक है जो भारत को एक नई उड़ान भरने में सहायता करेगी। भारत सरकार इस नई वैश्विक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण अंग है और इस भागीदारी को क्षेत्र के भीतर और दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करने के देश के प्रयासों से शक्ति मिली है। शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स और उसके नए विकास बैंक तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ जैसी संस्थाओं के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र एजेंसीज और विश्वभर में ऐसे कार्यक्रमों में भारत की सदस्यता और नेतृत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस लक्ष्य के अंतर्गत भारत के विकास के लिए धन की व्यवस्था करना, लोगों को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी नेटवर्क के जरिए जोड़ना, इंटरनेशनल ट्रेड फ्लो की व्यवस्था करना और डाटा के कंपाइलेशन तथा एनालिसिस को प्रबल करना शामिल है। इस लक्ष्य में अकेले भारत ही नहीं बल्कि अनेकों देशों का एकजुट होना आवश्यक है जिससे कि कहीं भी किसी भी प्रकार की रुकावट का सामना न करना पड़े।
#2030 का भारत
कैसा हो, इस
विचार पर कार्य
करने के लिए
लक्ष्य हेतु भागीदारी
विषय शरीर में
आत्मा की भूमिका
की तरह है,
जिसके बिना शरीर
प्राणहीन सा है।
इस लक्ष्य में
यह सुनिश्चित किया
गया है कि
भारत दुनिया के
साथ नेटवर्क कायम
करे, इसके साथ
ही विकासशील देशों
के लिए अंतर्राष्ट्रीय
समर्थन सहित घरेलू
संसाधन जुटाने की व्यवस्था
को मजबूत करना
जिससे कर और
अन्य राजस्व संकलन
के लिए देशों
की क्षमता में
सुधार हो सके,
विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार
की सुलभता बढ़ाना,
गरीबी उन्मूलन और
सतत विकास के
लिए नीतियां बनाने
और लागू करने
हेतु एक-दूसरे
देश की नीतिगत
क्षमता और नेतृत्व
का सम्मान करना,
सतत विकास के
बारे में प्रगति
के ऐसे पैमाने
विकसित करने हेतु
मौजूदा प्रयासों को आगे
बढ़ाना जो सकल
घरेलू उत्पाद के
पूरक हों और
विकासशील देशों में सांख्यिकीय
क्षमता निर्माण को समर्थन
दें, आदि सम्मिलित
हैं।
सतत
विकास के लक्ष्यों
को दूर करता
कोरोना काल
कोरोना महामारी के चलते जहाँ पूरी दुनिया को निरंतर नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वही सतत विकास के लक्ष्यों पर विजय प्राप्ति भी एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। कोरोना ने सतत विकास के लक्ष्यों पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला है। इस वायरस ने दुनिया को बता दिया है कि लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने, धरती बचाने और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए बड़े कदम उठाने की सख्त जरूरत है। जहाँ एक ओर कोरोना काल के दौरान नदियों तथा समुद्रों के प्रदुषण में कमी एवं स्थलीय तथा जलीय जीवों के जीवन स्तर में सुधार आया है, वहीं दूसरी ओर देश की आर्थिक स्थिति के बिगड़ते गरीबी तथा भुखमरी के आसार अत्यधिक बढ़ गए हैं।
गरीबी तथा भुखमरी सबसे बड़ी चुनौतियां
जब आजादी के 73 साल बाद भी देश की 21 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रह रही हो, तो निश्चय ही इसे शून्य पर लाने के लिए देश में काफी ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है। सतत विकास के प्रथम दो लक्ष्यों गरीबी तथा भुखमरी से भारत कई वर्षों से जूझ रहा है। इन लक्ष्यों पर विजय प्राप्त करना भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती रही है। कोरोना महामारी ने भारत की आर्थिक स्थिति को बहुत बुरी तरह से ठप कर दिया है, जिसका असर प्रत्यक्ष तौर से गरीबी तथा भुखमरी पर देखने को मिल रहा है। रोजी-रोटी के नुकसान और भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य तथा अन्य बुनियादी जरूरतों की कमी के कारण कोरोना ने हाशिए के समुदायों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में न्यूनतम 69 करोड़ लोग भुखमरी की समस्या से जूझते रहे थे। वहीं कोविड-19 के कारण 2020 में न्यूनतम 13 करोड़ से अधिक अन्य लोग भुखमरी की समस्या का सामना करने पर मजबूर हो सकते हैं। जिससे वर्ष 2030 तक ‘शून्य भुखमरी’ लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ी चुनौती पेश हो सकती है।
भारत की धीमी प्रगति
सतत विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रगति शुरू से ही काफी धीमी रही है। पड़ाेसी देश नेपाल, भूटान तथा श्रीलंका के विकास का प्रदर्शन भारत से बेहतर है। इस महामारी ने भारत के सतत विकास के लक्ष्यों की प्रगति को और धीमा कर दिया है। वर्तमान पलायन और बेरोजगारी को देखते हुए ये लक्ष्य और दूर हो गए हैं। इसने व्यापार और फैक्टरियों को बंद कर दिया है और अनेक श्रमबल की जिंदगियों को प्रभावित किया है। सबसे तेज प्रगति डेनमार्क (85.2), स्वीडन (85.0), फिनलैंड (82.8), फ्रांस (81.5) तथा ऑस्ट्रिया (81.1) देशों ने की है, जबकि भारत का स्थान 115 पर है।
भारत की प्रगति रिपोर्ट
भारत में गरीबी की रेखा का अनुपात 27.4 है जो एक प्रमुख चुनौती है, तथा कुपोषण का अनुपात 14.80 है। उत्तम स्वस्थ्य तथा खुशहाली के अंतर्गत प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मात्रा मृत्यु दर का अनुपात 174 है। साथ ही प्रति एक लाख की आबादी पर टीबी के मामलों का अनुपात 204 है। ये भारत के लिए प्रमुख चुनौतियां हैं। प्रति एक हजार की आबादी पर एचआईवी संक्रमण के खतरे का अनुपात 0.1 है जो एक प्राप्त लक्ष्य है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा में शुद्ध नामांकन का प्रतिशत 92.3 है। इसके साथ ही 15 -24 आयु वर्ग में महिला तथा पुरुषों में साक्षरता का प्रतिशत 86.1 है। लैंगिक समानता के चलते 25 साल से अधिक उम्र की महिलाओं की स्कूली शिक्षा (58.5%), महिलाओं की श्रमबल में भागीदारी (34.2 %) तथा संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व (11.8%) प्रमुख चुनौतियां हैं। स्वच्छ जल तथा स्वच्छता के चलते आबादी द्वारा कम से कम स्वच्छता की मुलभुत सेवाओं का उपयोग (44.2%) प्रमुख चुनौती है तथा कुल नवीनीकरण जल संसाधनों के रूप में ताजे पानी का दोहन (44.5%) शेष चुनौती है। सस्ती तथा प्रदुषण मुक्त ऊर्जा के तहत भोजन पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन तथा तकनीकी तक पहुँच (41%) तथा ईंधन तथा बिजली उत्पादन के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन (1.6%) प्रमुख चुनौतियां हैं। उत्कृष्ट कार्य तथा आर्थिक वृद्धि के चलते समायोजित विकास (1%), कुल श्रमबल की बेरोजगारी दर (3.5%) तथा प्रति एक लाख की आबादी में कार्यस्थल पर बड़ी दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु दर (0.1%) प्राप्त लक्ष्य हैं। उद्योग, नवाचार तथा बुनियादी सुविधाओं के अंतर्गत इंटरनेट का उपयोग करने वाली आबादी (34.5%), प्रति सौ नागरिकों की आबादी पर मोबाइल ब्रॉडबैंड सदस्यता (25.8%) तथा शोध एवं विकास पर खर्च (0.6%) प्रमुख चुनौतियां हैं। इसके साथ ही लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक, यातायात तथा व्यापर सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता (2.9%) शेष चुनौतियां हैं। असमानताओं में कमी के चलते GINI इंडेक्स (45.6%) एक प्रमुख चुनौती है। संवहनीय नगर तथा समुदाय के तहत शहरी क्षेत्रों में प्रति माह 2.5 की वार्षिक सघनता (90.9%) तथा जल स्त्रोतों में सुधार, पाइप के जरिए आपूर्ति (शहरी आबादी की पहुँच का 68.7%) प्रमुख चुनौतियां हैं, साथ ही सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से संतिष्टि (74.4%) प्राप्त चुनौती है। संवहनीय उपभोग तथा उत्पादन के तहत म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (0.3%), ई-कचरा (1.5%), उत्पादन आधारित सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन (6.2%), आयातित सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन (-0.4%) तथा प्रतिक्रियात्मक नाइट्रोजन उत्पादन फुटप्रिंट (-8.7%) प्राप्त चुनौतियां हैं। जलवायु कार्रवाई के चलते ऊर्जा जनित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (1.7%), तकनीकी समायोजित आयातित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (0.1%) तथा जीवाश्म ईंधन के निर्यात में सम्मिलित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (2.1%) प्राप्त चुनौतियां हैं। साथ ही प्रति एक लाख की आबादी पर जलवायु सम्बन्धी आपदा से प्रभावित लोगों की संख्या 2359.60 है, जो एक प्रमुख चुनौती है। जलीय जीवों की सुरक्षा के चलते महासागर स्वस्थ्य सूचकांक लक्ष्य "स्वच्छ जल" (22.7%) प्रमुख चुनौती है। इस लक्ष्य में जैव विविधता के लिहाज से महत्वपूर्ण संरक्षित समुद्री क्षेत्रों का औसत (29.0%) महत्वपूर्ण चुनौती है, साथ ही महाजाल से मछली पकड़ना (10.2%) शेष चुनौती है तथा मछली स्टॉक का अतिदोहन अथवा विशेष आर्थिक जोन (12.4%) प्राप्त चुनौती है। थलीय जीवों की सुरक्षा के चलते प्रजातियों के अस्तित्व से जुड़ा रेड लिस्ट इंडेक्स (0.7%) प्रमुख चुनौती, जैव विविधता के लिहाज से महत्वपूर्ण संरक्षित स्थलों का औसत (26.1%) तथा ताजे पानी के स्थलों का औसत (15.2%) महत्वपूर्ण चुनौती और पेड़ों की स्थाई कटाई (5 साल का सालाना औसत 0%) तथा प्रति दस लाख आबादी पर जैव विविधता के आयातित खतरे (0.3%) प्राप्त चुनौतियां हैं। शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाओं के चलते प्रति एक लाख की आबादी पर गैर सजा प्राप्त कैदियों की जनसँख्या (0.7%), 5 साल से काम उम्र के बच्चों का सिविल प्राधिकरण द्वारा पंजीकरण (71.9%) तथा 5-14 आयु वर्ग के बच्चे जो बालश्रम में संलिप्त हैं (11.8%), प्रमुख चुनौतियां हैं। प्रति एक लाख की आबादी पर मानव हत्या (3.2%), भ्रष्टाचार अनुभव सूचकांक (41) तथा प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (43.2) महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। इसके साथ ही रात में घूमते के दौरान सुरक्षित महसूस करना (73.1%) तथा संपत्ति का अधिकार (4.4) शेष चुनौतियां और 1990 US डॉलर मिलियन प्रति एक लाख आबादी पर प्रमुख पारम्परिक हथियारों का निर्यात (0) प्राप्त चुनौती है। लक्ष्य हेतु भागीदारी के चलते शिक्षा तथा स्वस्थ्य पर सरकारी व्यय (4.7%) प्रमुख चुनौती तथा टेक्स हेवन स्कोर (0) प्राप्त चुनौती है।
सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राज्यों की प्रगति
2030 के भारत के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए देश का प्रत्येक राज्य अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, जिनमें से 100 अंकों में से केरल (70), हिमाचल प्रदेश (69) तथा चंडीगढ़ (70) का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, वहीं दूसरी और जम्मू और कश्मीर (59), झारखण्ड (53) तथा बिहार (50) का सबसे खराब प्रदर्शन है।
यदि हम सभी लक्ष्यों की अलग-अलग बात करें तो गरीबी के अंत को लेकर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तमिलनाडु (72) तथा त्रिपुरा (70) का है एवं झारखण्ड (28) तथा बिहार (33) का सबसे खराब प्रदर्शन है। इस लक्ष्य हेतु भारत का एवरेज 50 है। भूख के अंत को लेकर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन गोवा (76) तथा मिजोरम (74) का है और सबसे खराब प्रदर्शन झारखण्ड (22) तथा दमन एवं दीव (12) का है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 35 है। उत्तम स्वस्थ्य तथा खुशहाली के चलते सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन केरल (82) तथा तमिलनाडु (76), आँध्रप्रदेश (76) एवं महाराष्ट्र (76) का है और सबसे खराब प्रदर्शन नागालैंड (24) तथा उत्तर प्रदेश (34) का है। साथ ही भारत का औसत 61 है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विजय प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हिमाचल प्रदेश (81) तथा केरल (74) का है, वहीं दूसरी और सबसे खराब प्रदर्शन बिहार (19) तथा ओडिशा (40) का है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 58 है। लैंगिक समानता लक्ष्य हेतु हिमाचल प्रदेश (52) तथा केरल (51) का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, साथ ही तेलंगाना (26) तथा अरुणाचल प्रदेश (33) का सबसे खराब प्रदर्शन है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 42 है। स्वच्छ जल तथा स्वच्छता के चलते सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन चंडीगढ़ (100) तथा आंध्र प्रदेश (96) का है, वहीं दूसरी और सबसे खराब प्रदर्शन दिल्ली (61) तथा त्रिपुरा (69) का है। साथ इस इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 88 है। सस्ती तथा प्रदुषण मिक्त ऊर्जा लक्ष्य के चलते सिक्किम (97), पुडुचेरी (97) तथा गोवा (95) का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है एवं लक्षद्वीप (43), ओडिशा (50) तथा झारखण्ड (50) का प्रदर्शन सबसे खराब है। इसके साथ ही भारत का एवरेज 70 है।
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