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स्वर्ग का टुकड़ा है वैभवशाली उज्जैन




उज्जैन का वर्णन कई पुराणों तथा महाकाव्यों में मिलता है, इस प्रकार उज्जैन का महत्व धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत भव्य और प्राचीन है। मानवाकृति भारत के मानचित्र में उज्जैन, भारत के मध्य स्थान में स्थित है, इसलिए इसे नाभिदेश भी कहा जाता है। 18 पुराणों में भी उज्जैन का वर्णन धार्मिक दृष्टि से सभी जगह मिलता है।

अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कां‍ची अवन्तिका:; पुरी, द्वारावती चैव, सप्तैते मोक्षदायका:

अर्थात सात पुरियों को मोक्षप्रदायिका बतलाया गया है, जिनके नाम क्रमशः आयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी (वाराणसी), कांची, अवंतिका (उज्जैन) तथा द्वारका है।

प्राचीनकाल में यह नगर मालवा की राजधानी था। इस नगर के विभिन्न नाम हैं: कनकश्रृंगा, कुशस्‍थली, अवन्तिका, पद्मावती, कुमुद्वती, प्रतिकल्पा, अमरावती और विशाला। कहीं-कहीं उज्जैन के नामों में अम्बिका, हिरण्यवती और भोगवती नामों का वर्णन भी मिलता है। स्कन्दपुराण के अवन्ति खंड में इन सभी नामों के कारणों का उल्लेख कथाओं द्वारा किया गया है।

महाभारत में भी इस नगर का उल्लेख है। विश्ववन्द्य गीता धर्म के प्रतिपादक योगीश्वर श्रीकृष्ण ने अपने अग्रज बलराम और मित्र सुदामा के साथ प्रात: स्मरणीय महर्षि-प्रवर सांदीपनि के चरणों में बैठकर 14 विद्याएं और 64 कलाएं प्राप्त की। यह उज्जैन के अतीत गौरव का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है, जहाँ ज्योतिष शास्त्र के बड़े-बड़े आचार्य उत्पन्न हुए हैं और अनेक ग्रंथ-रत्नों का निर्माण किया है। उज्जैन की दक्षिण दिशा में एक मान-मंदिर है जिसका निर्माण जयपुर नरेश जयसिंह ने करवाया था। उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है। उज्जैन नगरी में क्षिप्रा को गंगा के बराबर समझा जाता है।

यह नगरी महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी थी। उज्जैन में स्थित कालीयादेह महल से कुछ दूर स्थित प्राचीन तोरण द्वार के बारे में कहा जाता है कि यहीं सम्राट विक्रमादित्य का महल था, जो खंडर के रूप में मौजूद है। प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में सप्तम थे। ‘मेघदूत’ में महाकवि कालिदास ने उज्जैन का अत्यंत सुन्दर वर्णन करते हुए कहा है कि जब स्वर्गीय जीवों को अपने पुण्यक्षीण होने की स्थिति में धरती पर आना पड़ा, तब उन्होंने अपने साथ स्वर्ग का एक टुकड़ा भी साथ में ले जाने का निश्चय किया। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में आगे लिखा है कि स्वर्ग का यह टुकड़ा उज्जैन ही है।

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