
अपराधी इस जेल के नाम से खौफ खाते हैं। हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में स्थित नैनी जेल की। इस जेल में देश व प्रदेश के सबसे खूंखार कैदियों को रखा जाता है। आज हम आपको बता रहे हैं बेहद हाई सेक्योरिटी और चाक-चौबंद सुरक्षा वाली उत्तर प्रदेश के इलाहबाद स्थित ‘नैनी जेल’ से जुड़ी कुछ खास बातें:
रामजन्म भूमि से भी है जेल का नाता
बता दें कि अयोध्या राम जन्मभूमि में विस्फोट करने वाले आतंकी भी इसी जेल में कैद हैं।
ब्रिटिश राज में कैदखाना नाम से जानी जाती थी ‘नैनी जेल’
3,000 कैदियों की क्षमता वाली नैनी सेंट्रल जेल क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत की चौथी सबसे बड़ी जेल है। यह जेल भारत की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक मानी जाती है। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान यह जेल ‘कैदखाना’ के रूप में प्रसिद्ध थी।
इस जेल में ही सबसे पहले गूंजी थी ‘सरफरोशी की तमन्ना’
नैनी जेल में ही अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले ‘काकोरी काण्ड’ के दोषियों और उस समय की सबसे बड़े अंग्रेजी खजाने की लूट करने वाले क्रांतिकारी जैसे राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां, रोशन सिंह को अंग्रेजीं हुकूमत ने इसी जेल में रखा था।
‘मदन मोहन मालवीय’ को भी लाया गया था इसी जेल में
सन 1930 में ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ के दौरान ब्रिटिश सरकार ने पंडित मदन मोहन मालवीय को दिल्ली में एक कार्यसमिति की बैठक में गिरफ्तार कर नैनी जेल भेज दिया था। जिस पर स्वाधीनता सेनानी भगवानदास ने कहा था कि मालवीय जी का पकड़ा जाना राष्ट्रीय यज्ञ की पूर्णाहुति समझी जानी चाहिए।
इंदिरा गांधी भी रही हैं इस जेल में
11 सितम्बर, 1942 में इंदिरा गांधी तथा उनके पति फिरोज गांधी को इसी जेल में रखा गया था, जहां से वह 13 मई, 1943 को रिहा हुईं। एक तथ्य यह भी है कि एक ही परिवार के तीन सदस्य मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी इस जेल में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान रहे।
इसी जेल में पंडित नेहरू ने लिखनी शुरू की थी अपनी पहली किताब
पंडित जवाहर लाल नेहरू को 14 अप्रैल, 1930 को बंदी बना लिया गया। नेहरू को छह माह का कारावास हुआ और उन्हें नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उन्होंने चौथे जेल प्रवास के दौरान 175 से अधिक दिन जेल में व्यतीत किए। उन्हें 11 अक्टूबर, 1930 को रिहा कर दिया गया। जवाहर लाल नेहरू ने अपनी शुरुआती किताबें ‘विश्व इतिहास की झलक’ व ‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ नामक पुस्तक इसी जेल में ही लिखनी शुरू की थीं, हालांकि इन किताबों का लेखन कार्य जवाहर लाल नेहरू ने देहरादून की जेल में समाप्त किया था।
समाजवादी गढ़ के रूप में कुछ दिन
सन 1955 में डॉ. राम मनोहर लोहिया इसी जेल में अपने विश्वविद्यालय के मित्रों से मिले थे, जिनमें हिंदी के मशहूर लेखक धर्मवीर भारती भी शामिल थे। धर्मवीर भारती को आशा थी कि लोहिया जी उनसे नेहरू-कुशासन, राजनीति और समाजवादी आन्दोलन पर चर्चा करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि लोहिया जी सिर्फ साहित्य, इतिहास-दर्शन पर ही कई घंटे तक चर्चा करते रहे।
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाने वाले आतंकी भी कैद हैं जेल में
इस जेल में सबसे खूंखार कैदियों को रखा जाता हैं। लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद जैसे तमाम आतंकवादी संगठनों से जुड़े आतंकवादियों को भी यहां कैद किया गया है।
रचनात्मक कार्य करने में भी आगे है यह जेल
जेल प्रशासन कैदियों के साथ मिलकर रचनात्मक कार्य करता रहता है। यहां पर 13 कैदियों ने मिलकर देश का पहला ‘पाइप बैंड’ बनाया है, जो कि इस तरह का पहला व अनूठा प्रयोग है। हालांकि उत्तर प्रदेश की अन्य तीन जेलों में भी बैंड बनाये गये हैं। परतुं उनका प्रारूप अलग है। यही नहीं, नैनी जेल परिसर में 14 से 15 कैदी एमबीए और एमसीए हैं। इन सभी ने जेल के लगभग 300 कैदियों को शिक्षित करने का जिम्मा उठाया है। यहां कैदियों के हित को देखते हुए उन्हें विभिन्न विषयों जैसे कि स्नातक, स्नातकोत्तर और यहां तक कि डिप्लोमा प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम का अवसर मिलता हैं।
इस साल दी गई थी आखिरी फांसी
1989 में नैनी जेल में आखिरी बार तीन कैदियों को हत्या के जुर्म में फांसी दी गई थी, जिनमें कैदी श्रीकृष्ण-पुत्र छेदालाल, बाबूलाल-पुत्र बंसू और अशर्फी-पुत्र बंसू के नाम शामिल हैं। जिन फंदों पर उन्हें लटकाया गया, वे फांसी के फंदे आज भी नैनी जेल में मौजूद हैं। इन फंदों को मिट्टी के घड़ों में सहेज कर रखा गया है।
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