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राजा बलि पर वामन देव का तीसरा पग, कैसे बना पाताल लोक का रास्ता!

वामन अवतार से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा है जिसमें असुर राजा बलि का महत्वपूर्ण योगदान है। वामन अवतार भगवान विष्णु के एक अवतार माने जाते हैं। यह कथा दिखाती है कि कैसे राजा बलि (Raja Bali) ने देवताओं को पराजित करने के परिणामस्वरूप स्वर्ग को अपने आधीन कर लिया था।

Raja Bali Waman Dev Story 


राजा बलि द्वारा देवताओं के पराजित होने से सभी देवतागण बहुत दुखी हो गए थे। उन्होंने अपनी माता अदिति के पास जाकर अपनी परेशानी सुनाई। इसके बाद अदिति ने अपने पति कश्यप ऋषि के सुझाव पर एक व्रत किया, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में अवतार लिया।

वामन देव ने छोटी आयु में ही दैत्यराज बलि को पराजित कर दिया। बलि अहंकारी थे, और उन्हें लगता था कि वे सबसे बड़े दानी हैं। भगवान विष्णु वामन देव के रूप में उनके पास आए और तीन पग भूमि की मांग की।

बलि ने अपने अहंकार में तीन पग भूमि की मांग को तुच्छ समझ लिया। उन्होंने सोचा कि यह तो बहुत छोटा काम है, क्योंकि उनका संप्रभुत्व तो पूरी धरती पर है। 

तब शुक्राचार्य ने बलि को यह समझाने की कोशिश की कि वामन देव विष्णु के अवतार हैं और उनकी मांग को स्वीकार नहीं करनी चाहिए। शुक्राचार्य ने बलि को बताया कि वामन देव का यह छोटा रूप नहीं है, बल्कि विष्णु जी स्वयं हैं और वे तुम्हें ठगने आए हैं। तुम इन्हें तीन पग भूमि न दो।

बलि ने तब कहा कि अगर वामन भगवान के रूप में मेरे पास मांगने आए हैं, तो भी मैं उन्हें मना नहीं कर सकता।

इस पर वामन देव ने एक पतली लकड़ी उठाई और कमंडल की दंडी में रख दी, जिससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वह कमंडल से बाहर आ गए। उसके बाद राजा बलि (Raja Bali) ने वामन देव से तीन पग भूमि की मांग को स्वीकार कर लिया।

राजा के संकल्प स्वीकार करने के बाद, वामन देव ने अपना आकार बढ़ाकर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग को नाप दिया। फिर वे राजा से पूछे कि तीसरा पग कहां रखें? इस पर राजा बलि का अहंकार टूट गया।

तब बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं।

वामन देव ने उनकी दानवीरता की प्रशंसा की और तीसरा पग उनके सर पर रखते हुए राजा बलि (Raja Bali) को पाताल लोक का राजा बना दिया।

इस कथा से हमें यह महत्वपूर्ण सीख मिलती है कि जब कोई व्यक्ति नेक काम करने में व्यस्त हो, तो उसे उसके काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए। इस कथा में शुक्राचार्य ने राजा बलि को उसके दान के काम में रुकावट डालने की कोशिश की, जिससे उन्हें अपनी एक आंख खोनी पड़ी। इससे हमें यह सिख मिलती है कि हमें अन्य लोगों को उनके नेक काम करने में समर्थन देना चाहिए और उनकी प्रगति में रुकावट नहीं डालनी चाहिए।





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