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विधानसभा चुनाव: यूपी से पंजाब तक सोशल मीडिया बना जंग का स्वदेशी मैदान


उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए देशभर में सियासी पारा गर्म है। चुनावी राज्यों के राजनीतिक दल, सोशल मीडिया की जुबानी जंग से लेकर हर दांव पेंच अपनाने में लगे हुए हैं। खासकर कू जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म पर राजनेताओं और पार्टियों की वर्चस्व की लड़ाई, विधानसभा चुनावों को लेकर और अधिक दिलचस्पी पैदा कर रही है। अमूमन भाजपा को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का सटीक इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है लेकिन 2022 के विस चुनावों में नजारा कुछ अलग है। इन चुनावी राज्यों में बीजेपी समेत सभी अन्य पार्टियों की सोशल मीडिया सक्रियता काफी बढ़ गई है। सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी ट्विटर फेसबुक या यू ट्यूब के अलावा कू पर न सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं बल्कि इसे जंग के स्वादेसी मैदान में भी तब्दील कर चुकी हैं। आसान यूजर इंटरफेस और हिंदी भाषा के बेजोड़ मेल के साथ राजनेताओं को ट्वीट से अधिक कू करना अधिक भा रहा है। जहां वह अपनी क्षेत्रीय भाषा में भी लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं। 

यूपी की 403 विधानसभा सीटों पर बहुमत हासिल करने के लिए सत्ताधारी योगी आदित्यनाथ की सरकार को कई जटिल मुद्दों से पार पाना है। इसके लिए कुल 75 जिलों में कू समेत अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर डिजिटल कार्यकर्ताओं को सक्रिय और प्रभावी कर दिया गया है। हालांकि इस बार अन्य पार्टी भी सोशल मीडिया में पिछड़ने की भूल नहीं कर रही है। चुनावी राज्यों से CM योगी के साथ चीफ मिनिस्टर ऑफिस से लेकर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, रीता बहुगुणा जोशी, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, मायावती के करीबी सतीश चंद्र मिश्रा, सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव जैसे दिग्गज अपनी धरा मजबूत करने में लगे हैं। वहीं पंजाब की चुनावी रणनीति में भी कू का बखूबी इस्तेमाल देखने को मिल रहा है। सुखविंदर सिंह बादल, नछत्तर सिंह, हरसिमरत कौर बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया, यहां तक कि शिरोमणि अकाली दल का ऑफिशल अकाउंट भी कू कर हल्ला बोल रहा है।

जाहिर है ट्विटर की मनमर्जियों के बाद कू की बढ़ती लोकप्रियता इसका एक कारण है लेकिन यह मेक इन इंडिया का आइडिया लगभग सभी पार्टियों के लिए एक दूसरे को घेरने का बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। चुनावी राज्यों में पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मनीपुर के नामी चेहरे और जनसेवक कू के जरिए क्षेत्रीय लोगों तक क्षेत्रीय भाषा में अपनी बात पहुंचा रहे हैं। लेकिन एक आश्चर्य यह भी है कि राहुल और प्रियंका, मायावती , अखिलेश, खुद पीएम मोदी जैसे ऐसे बहुत से नेता मंत्री हैं, जिन्होंने अभी तक कू से दूरी बनाई हुई है। उम्मीद है अगले पांच महीने में कई और बड़े नाम हमें कू करते और एक दूसरे पर कटाक्ष करते नजर आएंगे।

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