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Exit Poll में बीजेपी 100 के पार, बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का है

देशभर में कोरोना महामारी के बीच 2 मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने हैं लेकिन नतीजों से पहले तमाम Exit Poll ने इस बात की ओर इशारा किया हैं कि बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का है. सभी Exit Poll में एक बात साफ नजर आ रही है कि बीजेपी तिहाई के आंकड़े के पार पहुंच रही है. बिहार की तरह पश्चिम बंगाल के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा असर देखने को मिल सकता है. यूपी चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल विधान चुनाव की जीत बीजेपी के कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करेगा. वहीं अगर ममता बनर्जी की टीएमसी सत्ता में वापसी करती है तो समूचे विपक्षी दलों में अपने खोए जनाधार को पाने का आत्मविश्वास जगेगा. इन सबके बावजूद बंगाल के नतीजे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के करियर पर भी बड़ा असर डालेगा.


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चुनाव अभियान के दौरान प्रशांत किशोर ने बीजेपी को राज्य में बड़ी ताकत माना. उन्होने यह भी कहा कि बीजेपी 100 सीट के पार नहीं जाएगी और तृणमूल जीत दर्ज करेगी. उन्होंने पहले बीजेपी के दहाई और बाद में तिहाई के आंकड़े पार करने पर चुनावी रणनीतिकार का पेशा छोड़ने तक की बात कह डाली.

पश्चिम बंगाल चुनावों में टीएमसी के मुकाबले बीजेपी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. पिछले कुछ सालों में पश्चिम बंगाल की राजनीति में बीजेपी ने नंबर दो की जगह भी हासिल कर ली है. यही वजह है कि प्रशांत किशोर ने भी बीजेपी को बड़ी राजनीतिक ताकत माना है. हालांकि चुनावी रणनीतिकार ने दावा किया है कि 'लोगों में ममता के खिलाफ असंतोष नहीं है. वह अब भी बंगाल की लोकप्रिय नेता हैं जो भी बंगाल को समझता है, वह जरूर बताएगा कि टीएमसी और ममता के लिए महिलाएं बड़ी संख्या में वोट दे रही हैं.' किशोर ने कहा कि 'मैं अपने 8-10 साल के अनुभव में किसी महिला नेता को इतना लोकप्रिय नहीं देखा. मेरा मानना है कि ममता बनर्जी बड़े अंतर से जीत रही हैं.'

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अगर प्रशांत किशोर की बातें सही साबित होती हैं तो साफ हो जाएगा कि सियासी नब्ज टटोलने में उनका कोई सानी नहीं. 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की बड़ी कामयाबी के बाद प्रशांत किशोर बड़े चुनावी रणनीतिकार के तौर पर रातोंरात सुर्खियों में छा गए. 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत के बाद रणनीतिकार प्रशांत किशोर को चुनावों में जीत की गारंटी माना जाने लगा. प्रशांत किशोर बिहार में मुख्यमंत्री आवास से राजनीतिक नर्सरी तैयार करने लगे. युवाओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच प्रशांत किशोर का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा. प्रशांत किशोर का असली इम्तिहान उत्तर प्रदेश विधान चुनाव में हुआ. अब तक प्रशांत किशोर ने राजनीति के दो करिश्माई शख्सियतों के चुनावी अभियान के साझीदार थे.

यूपी विधानसभा चुनाव में दो युवा राजनेताओं राहुल गांधी और अखिलेश यादव को प्रशांत किशोर का मंत्र काम नहीं आया. पंजाब और तेलंगाना के मामले में जीत का श्रेय प्रशांत किशोर से ज्यादा कैप्टन अमरिंदर सिंह और जगनमोहन रेड्डी को गया. यही वजह रही कि प्रशांत किशोर राजनीति में उतर आए और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के उपाध्यक्ष बन बैठें लेकिन जेडीयू का साथ प्रशांत किशोर को रास नहीं आया.

प्रशांत किशोर ने अपने चुनावी रणनीतिकार के पेशे को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाई. लिहाजा उन्हें एक बार फिर ऐसे करिश्माई शख्सियत की जरूरत महसूस हुई, जिसकी राष्ट्रीय राजनीति में भी विशिष्ट पहचान हो. उन्होंने पश्चिम बंगाल का रुख किया. यूपी और बिहार की तरह देश की राजनीति में पश्चिम बंगाल की प्रमुख भूमिका रही है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की शख्सियत से सभी परिचित हैं. प्रशांत किशोर ने एक बार फिर दांव लगाया है. अब देखना है कि ममता बनर्जी सत्ता में वापसी के साथ प्रशांत किशोर के डांवाडोल करियर को किनारे पर पहुंच पाएंगी या नाकाम रहेंगी.

स्रोत-NEWS18

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