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बिहार के छोटे से गांव में पैदा हुए मनोज बाजपेयी का सफर संघर्षों भरा रहा

मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले के एक छोटे से गांव बेलवा में हुआ। मनोज बाजपेयी को बचपन से ही सिनेमा का शौक लग गया था। अमिताभ बच्चन को पर्दे पर देखकर वो भी उनकी तरह अभिनय करना चाहते थे। उनके लिए बॉलीवुड तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। 



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किसान परिवार से ताल्लुक

मनोज बाजेपेयी के पिता गांव में खेती करते थे और उनकी मां हाउसमेकर थीं। पांच भाई बहनों में मनोज दूसरे नंबर पर थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई बिहार के बेतिया से की। 17 साल की उम्र में वो दिल्ली पहुंचे और दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। मनोज बाजपेयी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बारे में सुना जहां से ओम पुरी और नसरूद्दीन शाह जैसे अभिनेता निकले थे। वो एनसीडी में एडमिशन के लिए कोशिश में जुट गए लेकिन उन्हें तीन बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्हें आत्महत्या तक का ख्याल आया। 

संघर्षों भरा रहा सफर

फेसबुक पेज ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ के साथ उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा था कि ‘मैं एक किसान का बेटा हूं। बिहार के छोटे से गांव में पांच भाई बहनों के बीच पला बढ़ा हूं। एक झोपड़ीनुमा स्कूल में जाया करता था। बहुत साधारण जिंदगी थी लेकिन जब हम शहर जाते थे तो हम थियेटर जाते थे। मैं अमिताभ बच्चन का बहुत बड़ा फैन था। मैं उनकी तरह बनना चाहता था। मैं नौ साल का था लेकिन मैं जान गया था कि एक्टिंग में ही मुझे जाना है।‘

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सुसाइड का आया ख्याल

मनोज बाजपेयी बताते हैं कि दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी सीखी जिससे वो माहौल में फिट हो सकें। एनएसडी से तीन बार रिजेक्ट होने पर उन्होंने आत्हत्या के बारे में सोचा था। उन्होंने कहा कि ‘मैं उससे पहले कभी भी आत्महत्या के उतने करीब नहीं आया था। मेरे दोस्त डर गए थे। वो मेरे बगल में सोते और मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे। उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।‘

‘उसी साल मैं एक नुक्कड़ चाय की शॉप पर था जब मैंने देखा कि मेरा दोस्त तिग्मांशु धूलिया अपनी खटारा स्कूटर पर आ रहा है। मेरी ओर देखा और बताया कि शेखर कपूर अपनी फिल्म बैंडिट क्वीन में मुझे कास्ट करना चाहते हैं। आखिरकार मैं तैयार था, मुंबई जाने के लिए।‘

‘सत्या’ ने बदली किस्मत

‘बैंडिट क्वीन’ में मनोज बाजपेयी को लोगों ने पसंद किया लेकिन उसके बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा। फिर 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ रिलीज हुई जिसमें उन्होंने गैंगस्टर भीखू म्हात्रे का किरदार निभाया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड मिला। 

‘सत्या’ के बाद मनोज बाजपेयी ने ‘कौन’, ‘शूल’, ‘जुबैदा’, ‘पिंजर’, ‘एलओसी कारगिल’, ‘राजनीति’, ‘आरक्षण’, ‘स्पेशल 26’, ‘अलीगढ़’, ‘सोनचिरैया’, ‘गली गुलियां’ सहित अनेक फिल्मों में काम किया। फिल्मों के अलावा मनोज बाजपेयी इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर व्यस्त हैं। प्राइम वीडियो पर सीरीज ‘द फैमिली मैन’ में उनके किरदार श्रीकांत तिवारी को काफी पसंद किया ।  

स्रोत-Hindustan Hindi News

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