"डिंपल यादव, समाजवादी पार्टी की वो नेता जिसे हल्के में आंकने की कोशिश खुद पार्टी सुप्रीमों, उनके पति और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर रहे हैं। डिंपल पार्टी का चेहरा होंगी तो प्रदेश में समाजवाद की सायकल चलेगी।" ये कहना है राजनीतिक विश्लेषक और ज्योतिरादित्य के बीजेपी में शामिल होने या दिल्ली में केजरीवाल का डंका बजने जैसी कई सटीक भविष्यवाणी कर चुके अतुल मलिकराम का।
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उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है और इसकी तैयारी में राजनेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक, सब की ड्यूटी तय हो गई है। जहां एक तरफ योगी आदित्यनाथ अपने सख्त फैसलों के लिए जनता के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं तो वहीं विरोधी दल योगी सरकार ने तमाम फैसलों पर उंगली उठाना नहीं भूलते। विरोधियों में खासतौर से अखिलेश यादव को ही गिना जाता है क्योंकि फिलहाल सबसे सक्रिय विरोधियों में उनका नाम ही शामिल है। प्रियंका गांधी वाड्रा कई मौकों पर अपना विरोध जताती नजर आती हैं लेकिन वो भूसे में सुई ढूंढने जैसा हो जाता है। वहीं मायावती साइलेंट मोड में कभी कभी अनम्यूट होती नजर आती हैं।
मलिकराम के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में वर्चस्व की राजनीति देखने को मिलती है। एक तरफ मायावती और प्रियंका आमने सामने नजर आती हैं तो दूसरी तरफ योगी के खिलाफ अखिलेश और राहुल की जोड़ी। यूपी में युवाओं का भी बहुत जोर है। छात्र राजनीति और युवा कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश की राजनीति के प्रमुख अंग हैं। हालांकि इन सब के बीच डिंपल यादव एक अलग किरदार में दिख सकती हैं। ये निर्भर करता है पार्टी की चुनावी रणनीति पर कि विधानसभा चुनावों में डिंपल का क्या रोल तय किया जाता है। युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता और लगभग हर वर्ग की बहु बन चुकी डिंपल एक अलग छवि रखती हैं।
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अपनी पहली चुनावी हार से लेकर अब तक डिंपल में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। जोरदार लेकिन शालीन भाषणों में जनता से खुद को जोड़ने की कला हो या अखिलेश को प्रदेश का भईया बनाने का हुनर, राजनीतिक की हर शैली में उन्होंने खुद को मजबूती से स्थापित किया है। अब देखना ये है कि खुद अखिलेश इस बात पर कितना गौर कर रहे है। क्योंकि अखिलेश खुद प्रदेश का चेहरा हैं। लेकिन अगर वो ये समझें की डिंपल भी उन्ही का चेहरा हैं, तो आगामी चुनावों में शायद बात बन जाए।
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