
चावल समूची दुनिया में प्रचलित एक मुख्य भोजन है। खास बात यह है कि भारत वैश्विक स्तर पर चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। चावल का उत्पादन कई जैविक और अजैविक कारकों पर निर्भर करता है। नेक्रोट्रॉफिक फंगल रोगजनक (राइजोक्टोनिया सोलानी) बैक्टीरिया के कारण होने वाला शीथ ब्लाइट रोग चावल और अन्य कई फसलों के लिए एक बड़ा खतरा है।
नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पता चला है कि राइजोक्टोनिया सोलानी की कार्यप्रणाली में संशोधन, शीथ ब्लाइट के विरुद्ध प्रभावी रणनीति विकसित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शीथ ब्लाइट के लिए जिम्मेदार राइजोक्टोनिया सोलानी के तंत्र को समझने और इस रोग को नियंत्रित करने के लिए रणनीति विकसित करने में यह अध्ययन एक अहम कड़ी साबित होगा।

इस अध्ययन में राइजोक्टोनिया सोलानी के संक्रमण के दौरान इसकी रोगजनन क्षमता को निष्क्रिय करने की रणनीति विकसित की गई है, जो रोगजनक बैक्टीरिया को पौधों में रोग फैलाने से रोक सकती है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि चावल में शीथ ब्लाइट के नियंत्रण के साथ-साथ अन्य फसलों में भी राइजोक्टोनिया सोलानी जनित रोगों से बचाव में इस पद्धति का उपयोग किया जा सकता है।
आमतौर पर शीथ ब्लाइट रोग का नियंत्रण फफूंदनाशी रसायनों के छिड़काव से किया जाता है, जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। इसके साथ ही, निर्धारित सीमा से अधिक रसायन अवशेषों के कारण फसल उत्पादों का व्यावसायिक मूल्य कम हो जाता है, जो खाद्य उत्पादों के निर्यात से जुड़ी एक प्रमुख समस्या है। चावल के साथ-साथ राइजोक्टोनिया सोलानी को टमाटर सहित अन्य महत्वपूर्ण फसलों में रोगों का कारण माना जाता है। इसलिए, वैज्ञानिकों का कहना है कि इस संदर्भ में पर्यावरण के अनुकूल और रोग-नियंत्रण के स्थायी उपायों का विकास आवश्यक है।
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