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कैसे विराजमान हुए प्रभु श्री महाकाल उज्जैन में?


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भगवान शिव की 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित है, जिसका उल्लेख कई पुराणों में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस समय सृष्टि की संरचना हो रही थी, उस समय सूर्य की 12 रश्मियाँ धरती पर गिरीं। इन रश्मियों से सभी ज्योतिर्लिंगों का सृजन हुआ। महाकाल ज्योतिर्लिंग का मुख दक्षिण दिशा में स्थित है, इसलिए तंत्र क्रियाओं की दृष्टि से महाकाल मंदिर का बेहद खास महत्व है।

काल के दो अर्थ होते हैं- एक समय और दूसरा मृत्यु। कालों के काल महाकाल को ‘महाकाल’ इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था। 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एकमात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहते हैं कि ‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।’ अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

उज्जैन नगरी में राजा विक्रमादित्य का शासन होने के बावजूद यहाँ के शासक प्राचीन काल से आज तक प्रभु श्री महाकाल ही हैं। प्रभु महाकाल उज्जैन के एक मात्र राजा हैं इसलिए यहाँ कोई भी राजा रात नहीं बिता सकता है। राजा विक्रमादित्य भी रात में उज्जैन के पास गाँव में रहते थे। ऐसी मान्यता है कि महाकाल के अलावा कोई भी राजा रात में यहाँ रुकता है तो वह मृत्यु के घाट उतर जाता है। पौराणिक कथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहाँ रात में नहीं रुक सकते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा महाकाल श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं।

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