जीवन का वरदान देने वाली पृथ्वी का आज स्वयं का जीवन संकट में है। विश्व की बढ़ती जनसँख्या, कटते पेड़, दूषित हवा और जल, प्रदुषण, प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ एवं बिगड़ते वातावरण के साथ पृथ्वी की जलवायु में लगातार बदलाव हो रहे हैं। इसका सीधा असर मनुष्य सहित अनेकों प्राणियों के जीवन स्तर पर पड़ रहा है एवं हमें मौसम के बदलते रूप, समुद्र के चढ़ते जल स्तर और कठोर मौसम का सामना करना पड़ रहा है। इस परिवर्तन में सहायक, इंसानी गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, आपदाओं को भी बढ़ा रहा है और उसका सामना करना हमारे जीवन की रक्षा और आने वाली पीढ़ियों के जीवन तथा खुशहाली के लिए अत्यंत आवश्यक है।
1880 से 2012 तक दुनिया के तापमान में औसतन 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। इसका असर यह है कि तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि से अनाज की पैदावार करीब 5% गिर जाती है। वैश्विक स्तर पर गर्म होती जलवायु के कारण 1981 और 2002 के बीच मक्का, गेहूं और अन्य प्रमुख फसलों की पैदावार में 40 मेगाटन प्रतिवर्ष की गिरावट देखी गई। 1901 से 2010 तक दुनिया में समुद्री जल के स्तर में औसतन 19 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई क्योंकि गर्म होते तापमान और हिम के पिघलने से महासागरों का विस्तार हुआ। कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक उत्सर्जन 1990 के बाद से लगभग 50% बढ़ा है। सन् 2000 और 2010 के बीच उत्सर्जन में वृद्धि इससे पहले के तीन दशकों में से प्रत्येक की तुलना में अधिक तेज गति से हुई है। यदि हम भारत की बात करें तो भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है और 5.3% वैश्विक उत्सर्जन करता है। इसके बावजूद 2005 और 2010 के बीच भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 12% की कमी आई। भारत ने अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 2020 तक 20-25% कमी का संकल्प लिया है।
#2030 के भारत के इस लक्ष्य के अंतर्गत जलवायु से जुड़े खतरों और प्राकृतिक आपदाओं को सहने तथा उनके अनुरूप ढ़लने की क्षमता मजबूत करना, प्लास्टिक पर रोक लगाकर नदियों और महासागरों के दूषित होने पर रोक लगाना, जलवायु परिवर्तन का असर कम करने, उसके अनुरूप ढ़लने, प्रभाव घटाने और जल्दी चेतावनी देने के लिए शिक्षा और जागरूकता उत्पन्न करने की व्यवस्था में सुधार करना, आदि शामिल हैं। भारत सरकार ने इस समस्या से सीधे निपटने के लिए राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्रवाई योजना और राष्ट्रीय हरित भारत मिशन को अपनाया है। इन राष्ट्रीय योजनाओं के साथ-साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल, ऊर्जा कुशलता बढ़ाने, संवहनीय पर्यावास, जल, हिमालय की पारिस्थितिकी को सहारा देने तथा जलवायु परिवर्तन के बारे में रणनीतिक जानकारी को प्रोत्साहित करने के बारे में अनेक विशेष कार्यक्रम भी अपनाए गए हैं।
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