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उज्जैन के 10 मुख्य धार्मिक स्थल

 


महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से भारत के नाभिस्थल में कर्क रेखा पर स्थित है। श्री महाकाल का वर्णन रामायण, महाभारत आदि पुराणों एवं संस्कृत साहित्य के अनेक काव्य ग्रंथों में मिलता है। पूरे भारतवर्ष में यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां ताजी चिताभस्म से प्रतिदिन भस्म आरती होती है। ऐसी मान्यता है कि जिसकी चिता की भस्म महाकाल पर अर्पित की जाती है, उसे परम मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्री चिंतामण गणेश मंदिर

उज्जैन का अत्यंत प्रसिद्द श्री चिंतामण गणेश मंदिर परमार कालीन मंदिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। यह मंदिर उज्जैन नगरी से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में श्री चिंतामणि गणेश के साथ ही इच्छापूर्ण और चिंताहरण गणेशजी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गईं मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होती हैं। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।

श्री बड़े गणपतिजी का मंदिर

श्री महाकालेश्वर मंदिर के पीछे तथा प्रवचन हॉल के सामने गणेशजी की विशालकाल एवं अत्यंत आकर्षक मूर्ति प्रतिस्थापित है। इस मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में महर्षि सांदीपनि के वंशज एवं विख्यात ज्योतिषविद् स्व. पं. नारायणजी व्यास द्वारा करवाया गया था।

माँ हरसिद्धि का मंदिर 

उज्जैन के प्राचीन औरपवित्र उपासना स्थलों में श्री हरसिद्धिदेवी देवी के मंदिर का विशेष स्थान है। ऐसा माना जाता है कि माँ हरसिद्धि सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य तथा कुलदेवी थीं।

स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि शिवजी के कहने पर मां भगवती ने दुष्ट दानवों का वध किया था। तब से ही वे हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध हुईं। शिवपुराण के अनुसार सती की कोहनी यहीं पर गिरी थी अतएव तांत्रिक ग्रंथों में इसे सिद्ध शक्तिपीठ की संज्ञा दी गई है। यह देवी, सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य कुलदेवी भी कही जाती है।

श्री कालभैरव मंदिर

उज्जैन में स्थित अष्ट भैरवों में प्रमुख, श्री कालभैरव का यह मंदिर अत्यंत प्राचीन और चमत्कारी है। यह चमत्कारी इसलिए है क्योंकि इस मंदिर में स्थित भैरव प्रतिमा के मुंह में छिद्र होते हुए भी यह प्रतिमा मदिरापान करती है। जब पुजारी जी के द्वारा मद्य पात्र बाबा भैरवजी के मुंह से लगाया जाता है, तो देखते ही देखते यह पात्र स्वत: ही खाली हो जाता है।

यह मंदिर भैरवगढ़ के दक्षिण में तथा शिप्रा नदी के तट पर स्थित है।  इस मंदिर के प्रांगण में स्थित एक संकरी और गहरी गुफा में पाताल भैरवी का मंदिर है। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में कालभैरव के इस मंदिर का वर्णन मिलता है। इनके नाम से ही यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है।

श्री मंगलनाथ मंदिर

उज्जैन में स्थित श्री मंगलनाथ का मंदिर एक महत्वपूर्ण और प्राचीन मंदिर है। मत्स्य पुराण में मंगल ग्रह को भू‍‍मि-पुत्र कहा गया है, ऐसी   पौराणिक मान्यता है कि मंगल ग्रह की जन्मभूमि भी यहीं है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, ऋणमुक्ति तथा धन प्राप्ति हेतु श्री मंगलनाथजी की प्राय: उपासना की जाती है। यहां पर भात-पूजा तथा रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। ज्योतिष एवं खगोलविज्ञान के दृष्टिकोण से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनकी पूजा एवं आराधना का अपना विशेष महत्व है।  

श्री गढ़कालिका देवी मंदिर

उज्जैन में कालका माँ का यह मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, वहां प्राचीन अवन्तिका नगरी बसी हुई थी। गढ़ पर स्थित होने के कारण ही माता गढ़कालिका कहलाईं। मंदिर में कालिकाजी के एक तरफ श्री महालक्ष्मीजी हैं और दूसरी तरफ श्री महासरस्वतीजी की प्रतिमा स्थित है। माँ गढ़कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी माना जाता है। उनकी अनुकंपा से ही अल्पज्ञ कालिदास को विद्वता प्राप्त हुई थी। तांत्रिक दृष्टिकोण से यह एक सिद्धपीठ है। त्रिपुरा माहात्म्य के अनुसार देश के 12 प्रमुख शक्तिपीठों में यह 6ठा स्थान इस मंदिर का ही है।

श्री गोपाल मंदिर

उज्जैन का गोपाल मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा श्री दौलतरावजी सिंधिया की महारानी बायजाबाई द्वारा कराया गया था। नगर के मध्य स्थित इस मंदिर में द्वारकाधीश की अत्यंत मनोहारी मूर्ति है। मंदिर के गर्भगृह में लगा रत्नजड़ित द्वार श्रीमंत सिंधिया ने गजनी से प्राप्त किया था, जो सोमनाथ मंदिर की लूट के साथ ही वहां पहुंच गया था। इस भव्य मंदिर का शिखर सफेद संगमरमर से एवं शेष भाग सुंदर काले पत्थरों से निर्मित है। मंदिर का प्रांगण तथा परिक्रमा पथ भव्य और विशाल है।

श्री चारधाम मंदिर

उज्जैन का श्री चारधाम मंदिर, माँ हरसिद्धि मंदिर की दक्षिण दिशा में स्थित है। स्वामी शांतिस्वरूपानंदजी तथा युगपुरुष स्वामी परमानंदजी महाराज के सद्प्रयत्नों से इस मंदिर की स्थापना अखंड आश्रम परिसर में हुई।

इस मंदिर में स्थापित श्री द्वारकाधाम एवं श्री जगन्नाथ धाम की प्राण-प्रतिष्ठा सन् 1997 में तथा श्री रामेश्वरधाम की प्राण-प्रतिष्ठा सन् 1999 में हुई थी, बकि चौथे धाम श्री द्रीविशाल की प्राण-प्रतिष्ठा सन् 2001 में हुई।

सभी प्रतिमाओं को इनका स्वाभाविक मूल स्वरूप ही प्रदान किया गया ताकि दर्शनार्थियों को यथार्थ दर्शन के लाभ प्राप्त हो सकें। एक ही परिसर में चारों धामों के दर्शन को प्राप्त करना प्राय: दुर्लभ संयोग ही होता है, जो हमें उज्जैन के इस मंदिर में मिलता है।

श्री नवग्रह मंदिर (शनि मंदिर)

उज्जैन शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर इंदौर-उज्जैन मार्ग पर त्रिवेणी संगम तीर्थ स्थित है। यहां पर नवग्रहों का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण में इसे शनिदेव के महत्वपूर्ण स्थान के रूप में मान्यता दी गई है। प्रत्येक शनिवार तथा शनैश्चरी अमावस्या को यहां पर असंख् श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

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