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भारत का घुमन्तु समुदाय आखिर कब तक अपने होने न होने का सबूत देता रहेगा?

 


भारत में घुमंतू समुदायों की आबादी 13 करोड़ से अधिक है, लेकिन पिछले 74 सालों में सरकारों की नीतिगत शून्यता और संस्थागत विफलता ने इस समाज की समस्याओं को चरम पर पहुंचा दिया है। देश में घुमंतू समुदायों की स्थिति में गिरावाट दशकों से जारी है, जिसके चलते यह समाज हर स्थिति में भारत के अन्य समुदायों से बहुत ज्यादा पिछड़ गया है। इस समाज की अवहेलना के लिए एक सरकार नहीं, बल्कि आजाद भारत की तमाम सरकारें दोषी हैं। 
भारत में आदिवासियों के लिए कई खास स्कूल हैं, लेकिन घुमंतू समुदायों के लिए एक भी समर्पित स्कूल नहीं है। अकेले अजमेर जिले में ही घुमंतू समुदायों के 12 हजार से ज्यादा बच्चे स्कूलों से वंचित हैं। जबकि भारत में 1200 से ज्यादा घुमंतू समुदाय हैं, जो ज्ञान के खास प्रकार हैं। इनके जीवन के अपने अलग रंग हैं, इनकी अपनी अलग भाषा, रीति-रिवाज और जीवन शैली हैं। ये भारत के बेहद असाधारण लोग हैं। 
नहीं है इस समुदाय की ओर सरकार का ध्यान
2019 के बजट में केंद्र सरकार ने एक नया आयोग और राज्यों में घुमंतू बोर्ड बनाए जाने की घोषणा की और नीति आयोग के अंतर्गत घुमंतू समुदायों के उत्थान हेतु एक पद सृजित किया, जिसका अध्यक्ष भीखूराम इदाते को बनाया गया। लेकिन अभी तक घुमन्तु समुदाय के लिए एक भी अच्छी खबर इस पद से नहीं मिली है। 
देश की राज्य सरकारों की स्थिति भी केंद्र सरकार के समान ही है। राजस्थान की पिछली गहलोत सरकार ने घुमंतू बोर्ड बनाया था, जिसका बजट पचास लाख रुपए रखा था। उसके बाद वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार बनी। उन्होंने एक बोर्ड बना कर अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त कर दिए, जिसमें अध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया। लेकिन उस बोर्ड के लिए बजट आवंटित ही नहीं किया गया। राजस्थान में एक बार फिर से गहलोत सरकार सत्ता में आई है, किंतु बोर्ड की स्थिति का कुछ पता नहीं है।
राजस्थान सरकार ने लॉकडाउन के एक महीने पहले अपना वार्षिक बजट पेश किया, जिसके अनुसार राजस्थान की कुल जनसंख्या लगभग सात करोड़ है और घुमंतू समुदाय की आबादी लगभग 60 लाख है। फिर भी इस आबादी के लिए बजट में एक भी प्रावधान नहीं बनाया गया है।  
अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की। मध्यप्रदेश में 61 घुमंतू समुदाय हैं, जिनकी आबादी 70 लाख के करीब है। मध्यप्रदेश सरकार ने भी अपने बजट में घुमंतू समुदायों को कुछ नहीं दिया। राजस्थान और मध्यप्रदेश के इन 10 फीसदी लोगों के पास बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) राशन कार्ड तक नहीं हैं। इनके बुजर्गों और विधवा महिलाओं को पेंशन नहीं मिलती। कानून का ही बनाया गया प्रावधान है कि जहाँ भी 150 से ज्यादा लोगों की बस्ती हैं, वहाँ आंगनबाड़ी केंद्र होना चाहिए। इनके एक समुदाय में 150 से ज्यादा सदस्य रहते हैं, फिर भी इनके लिए एक भी आंगनवाड़ी नहीं हैं। 
बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में भी घुमन्तु समुदायों की जनसंख्या 50 लाख से ज्यादा है, किंतु यहाँ भी इन लोगों के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं हैं और ना ही कोई उत्थान का कार्यक्रम है। केरल को छोड़कर लगभग सभी राज्यों की यही हालत है। 
अपनी जिंदगी घूम घूम के बसर करने के कारण इस समुदाय के मृत परिजनों को मौजूदा शहर या गाँव के लोग अंतिम संस्कार तक नहीं करने देते हैं। जीते जी घूमने के साथ ही इनका मृत शरीर भी घूमता रहता है। मजबूर परिजन सुनसान जगह देखकर मृत व्यक्ति का दाह संस्कार करते हैं। 
भारत के इन बेसहारा समुदायों को सर ऊँचा करके जीने के लिए हमारी सरकार तथा समाज के प्यार और समर्थन की बेहद जरुरत है। प्रशासन को अब इन समुदायों के लिए अपने मोहभंग से अलग उचित प्रावधान बनाने को लेकर विचार करना ही चाहिए। 

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