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2030 का भारत: भारत के थलीय जीवों की सुरक्षा लक्ष्य पंद्रह द्वारा पूर्ण की जाएगी

 



धरती पर रहने वाले अरबों-खरबों प्राणियों में केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो हर रूप में अन्य से समर्थ, सक्षम, सबल और संपन्न है। जमीन पर मानव तथा अन्य प्राणियों के जीवन के संरक्षण के लिए न सिर्फ थलीय पारिस्थतिकियों का संरक्षण करना बल्कि उन्हें पुनर्जीवित करने तथा भविष्य के लिए उनके संवहनीय उपयोग को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक कार्रवाई आवश्यक है। मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वृक्षों का कटाव और मरुस्थलीकरण सतत् विकास में एक बड़ी चुनौती है और इसने गरीबी से संघर्ष में लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविका पर असर डाला है।

एक प्रजाति के रूप में हमारा भविष्य हमारे सबसे महत्वपूर्ण पर्यावास-जमीन की हालत पर निर्भर करता है। हमारा भविष्य जमीन की पारिस्थतिकी की रक्षा से जुड़ा है फिर भी अब तक 8300 ज्ञात पशु नस्लों में से 8% लुप्त हो चुकी हैं और 22% खोने को हैं। 1.3 हैक्टेयर वन हर वर्ष गायब हो रहे हैं, जबकि खुश्क भूमि के निरंतर विनाश के कारण 3.6 अरब हैक्टेयर इलाका मरुस्थल हो गया है। इस समय 2.6 अरब लोग सीधे तौर पर खेती पर निर्भर हैं, लेकिन 92% खेती की जमीन मिट्टी के विनाश से सामान्य और गंभीर रूप से प्रभावित है। 

जमीन और वन सतत विकास के बुनियादी अंग हैं। पृथ्वी की सतह के 30% हिस्से पर वन हैं। ये वन खाद्य सुरक्षा देने के अलावा जलवायु परिवर्तन का सामना करने तथा जैव विविधता की रक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। जीव-जंतुओं, पशु, पौधों और कीटों की कुल संख्या का 80% से अधिक वनों में निवास करता है। इस समय 1.6 अरब लोग भी अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। इंसान की 80% से अधिक खुराक पौधों से आती है। चावल, मक्का और गेहूं 60% ऊर्जा देते हैं। इसके अलावा विकासशील देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहते 80% से अधिक लोग अपने बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारंपरिक औषध वनस्पति पर निर्भर हैं।

यदि हम भारत की बात करें तो भारत में वनाच्छादित क्षेत्र अब 21% है और देश के कुल थलीय क्षेत्र का करीब 5% संरक्षित क्षेत्र है। दुनिया की 8% जैव विविधता भारत में है जिसमें अनेक प्रजातियां ऐसी हैं जो दुनिया में कहीं और नहीं मिलती हैं। #2030 के भारत के थलीय जीवों की सुरक्षा लक्ष्य में प्राकृतिक पर्यावास का विनाश रोकने, पशुओं की चोरी और तस्करी समाप्त करने तथा पारिस्थतिकी और जैव विविधता मूल्यों को स्थानीय नियोजन एवं विकास प्रक्रियाओं में शामिल करने के लिए तत्काल कार्रवाई करना सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही इस लक्ष्य में वृक्ष कटाव को रोकना, मरुस्थलीकरण रोकना, मरुस्थलीकरण से क्षतिग्रस्त भूमि सहित क्षतिग्रस्त जमीन और मिट्टी को फिर से उपयोग लायक बनाना तथा ऐसे विश्व की रचना करना जहाँ भूमि का क्षय न हो, शामिल किया गया है। भारत का राष्ट्रीय वृक्षारोपण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय समन्वित वन्य जीव पर्यावास ऐसे मूल प्रोजेक्ट्स हैं जिनका उद्देश्य जमीन की पारिस्थितिकी का संरक्षण करना है। इसके साथ ही सरकार द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम की दो अलग-अलग योजनाएँ संचालित की गई हैं जिनका उद्देश्य देश के दो सबसे भव्य पशुओं का संरक्षण करना है।

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