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2030 का भारत: लक्ष्य सत्रह का उद्देश्य सभी लक्ष्यों हेतु भागीदारी रखना है

 

किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को तब तक करना मुश्किल होता है जब तक आप अकेले हो, लेकिन किसी के सहयोग और भागीदारी के साथ किया गया कार्य हमेशा पॉजिटिव रिजल्ट ही देता है। यह मुहावरा इस बात में जान डाल देता है कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाख की। लक्ष्य हेतु भागीदारी ऐसी चुनौती है जो सतत विकास के अन्य सभी 16 लक्ष्यों के बारे में भारत के द्वारा किए जा रहे प्रयासों को एकजुट करती है। एक सफल सतत् विकास एजेंडा के लिए सरकारों, निजी क्षेत्रों और समाज के बीच भागीदारी आवश्यक है। 

सतत विकास एजेंडा के लिए महत्वकांक्षी भागीदारी का होना अत्यंत आवश्यक है जो भारत को एक नई उड़ान भरने में सहायता करेगी। भारत सरकार इस नई वैश्विक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण अंग है और इस भागीदारी को क्षेत्र के भीतर और दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करने के देश के प्रयासों से शक्ति मिली है। शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स और उसके नए विकास बैंक तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ जैसी संस्थाओं के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र एजेंसीज और विश्वभर में ऐसे कार्यक्रमों में भारत की सदस्यता और नेतृत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस लक्ष्य के अंतर्गत भारत के विकास के लिए धन की व्यवस्था करना, लोगों को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी नेटवर्क के जरिए जोड़ना, इंटरनेशनल ट्रेड फ्लो की व्यवस्था करना और डाटा के कंपाइलेशन तथा एनालिसिस को प्रबल करना शामिल है। इस लक्ष्य में अकेले भारत ही नहीं बल्कि अनेकों देशों का एकजुट होना आवश्यक है जिससे कि कहीं भी किसी भी प्रकार की रुकावट का सामना न करना पड़े। 

#2030 का भारत कैसा हो, इस विचार पर कार्य करने के लिए लक्ष्य हेतु भागीदारी विषय शरीर में आत्मा की भूमिका की तरह है, जिसके बिना शरीर प्राणहीन सा है। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करे, इसके साथ ही विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सहित घरेलू संसाधन जुटाने की व्यवस्था को मजबूत करना जिससे कर और अन्य राजस्व संकलन के लिए देशों की क्षमता में सुधार हो सके, विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार की सुलभता बढ़ाना, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए नीतियां बनाने और लागू करने हेतु एक-दूसरे देश की नीतिगत क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना, सतत विकास के बारे में प्रगति के ऐसे पैमाने विकसित करने हेतु मौजूदा प्रयासों को आगे बढ़ाना जो सकल घरेलू उत्पाद के पूरक हों और विकासशील देशों में सांख्यिकीय क्षमता निर्माण को समर्थन दें, आदि सम्मिलित हैं।

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