अहिंसा सभी धर्मों से बड़ा धर्म है, ऐसा माना जाता है। जी हाँ, मैंने कहा ऐसा माना जाता है, लेकिन क्या सच में हम इसे मानते हैं ? नहीं, हम इसे नहीं मानते हैं, यह कड़वा है पर सच है। आज न जाने कितने ही लोग किसी न किसी रूप में हिंसा के शिकार होते हैं। हिंसा दुनियाभर में देशों के विकास, वृद्धि, खुशहाली और अस्तित्व के लिए सबसे विनाशकारी चुनौती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, शोषण, चोरी और कर वंचना आदि ऐसे कितने ही विषय हैं जो चिंताजनक हैं और किसी न किसी रूप में जनहानि तथा मानहानि को जन्म देते हैं। इंसान को इस जानलेवा बीमारी ने इस कदर जकड़ रखा है कि इनका जड़ से विनाश करना मानव कल्पना से परे है।
दुनियाभर में होने वाली कुल हत्याओं में से 43% में 10 से 29 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं। यदि हम गौर करें तो सहारा के दक्षिण अफ्रीकी देशों में 2010-2012 में मानव तस्करी के 70% शिकार बच्चे थे। गैर-जवाबदेह कानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और लोगों को उनके मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं।
यदि हम भारत की बात करें तो भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का बोझ गतवर्षों में कुछ हल्का हुआ है, जो 2014 में 41.5 लाख से घटकर 2015 में 38.5 लाख रह गया। हमारा देश सरकार के अनेक प्रयासों के बल पर न्यायपालिका को सशक्त करने को प्राथमिकता दे रहा है। इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का प्रगति प्लेटफॉर्म और गाँवों में ग्राम न्यायालयों सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं।
#2030 के भारत के इस लक्ष्य के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया गया है कि देश में शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाएँ स्थापित हों। इस लक्ष्य में बच्चों को यातना और उनके साथ हिंसा के सभी रूपों, दुराचार, शोषण और तस्करी को खत्म करना, सभी स्थानों पर हिंसा के सभी रूपों और सम्बद्ध मृत्यु दरों में उल्लेखनीय कमी करना, धन और हथियारों के अवैध प्रवाह में उल्लेखनीय कमी करना, चोरी हुई परिसम्पत्तियों को खोज निकालने और लौटाने की व्यवस्था सशक्त करना और हर प्रकार के संगठित अपराधों का सामना करना, भेदभाव-विहीन कानूनों और नीतियों को लागू और प्रोत्साहित करना, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के सभी रूपों का खात्मा करना, जन्म पंजीकरण सहित सबके लिए कानूनी पहचान देना, सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थाओं को विकसित करना, सभी स्तरों पर माँग के अनुरूप, समावेशी, भागीदार और प्रतिनिधित्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं।
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