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2030 का भारत - पांचवे लक्ष्य के चलते लाई जाएगी लैंगिक समानता

 



महिलाएँ समाज की वास्तविक वास्तुकार होती हैं, यह बात लगभग हर व्यक्ति मानता है फिर क्यों उन्हें उतना महत्व नहीं दिया जाता है? क्यों माहिला और पुरुष में भेदभाव किया जाता है? क्यों हर बार एक लड़की को यह बोलकर चुप करा दिया जाता है कि तुम लड़की हो? क्यों उसे उसके सपनों को जीने और उन्हें साकार करने का अधिकार नहीं दिया जाता है? क्यों उसे एक लड़के से हमेशा काम आँका जाता है? क्यों????
ऐसे न जाने कितने ही सवाल हैं जो मन को झकझोर कर रख देते हैं?
लैंगिक असमानता देश के मानव इतिहास में अन्याय का व्यापक तथा निरंतर रूप बना हुआ है। देश के कई हिस्सों में आज भी महिलाएँ भेदभाव तथा हिंसा झेल रही है। कई स्थानों पर लैंगिक असमानता के मामलों में कामियाँ मौजूद हैं, जिसे पूर्ण रूप से समाप्त करना देश के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। लैंगिक समानता एक बुनियादी मानव अधिकार ही नहीं है, बल्कि एक शांतिपूर्ण और टिकाऊ विश्व के लिए आवश्यक बुनियाद भी है। शिक्षा की समान सुलभता न सिर्फ महिलाओं के लिए आवश्यक अधिकार हैं, बल्कि इनसे कुल मिलाकर मानवता लाभान्वित होती है। यह उद्देश्य सतत विकास के #2030 के भारत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि 2030 तक भारत में महिलाओं के साथ हो रहे हर एक भेदभाव को जड़ से उखाड़ दिया जाए। प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’पहल, महिलाओं के रोजगार के बारे में विशेष प्रयास, किशोरी बालिकाओं के सशक्तिकरण के कार्यक्रम, बालिका की संपन्नता के लिए सुकन्या समृद्धि योजना और माताओं के लिए जननी सुरक्षा योजना जैसे उपाय लैंगिक समानता और इस लक्ष्य के उद्देश्यों के प्रति भारत के संकल्प को आगे बढ़ाते हैं।

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