नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद भी वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि प्रत्येक क्षेत्र में असमानता ही देखने को मिलती है। कम होने के बजाए यह दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है जो एक दयनीय मुद्दा है। यदि हम गतवर्षों की बात करें तो 2014 में दुनिया में सबसे अमीर एक प्रतिशत जनसंख्या के पास दुनिया की 48% दौलत थी, जबकि सबसे निचले स्तर पर मौजूद 80% लोगों के पास कुल मिलाकर दुनिया की सिर्फ 6% दौलत थी। यह असंतुलन तब और भी स्पष्ट हो जाता है, जब हम देखते हैं कि सिर्फ 80 व्यक्तियों के पास इतनी दौलत है जितनी दुनिया भर में सबसे कम आय वाले 3.5 अरब लोगों के पास है। औसत आय में असमानता 1990 और 2010 के बीच विकासशील देशों में सिर्फ 11% ही बढ़ी। भारत के लिए आय में असमानता का गिनि कोएफिशिएंट 2010 में 36.8% था, जो घटकर 2015 में 33.6% रह गया।
सबसे कम विकसित देश, भूमि से घिरे विकासशील देश और छोटे द्वीपीय विकासशील देश गरीबी कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। किन्तु इन देशों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं तथा अन्य परिसंपत्तियों की सुलभता में भारी विषमताएं हैं। देशों के बीच आय में असमानता भले ही कम हुई हो, लेकिन देशों के भीतर असमानता लगातार बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार 2000 के दशक के अंतिम वर्षों में दक्षिण एशिया में सबसे दौलतमंद जनसंख्या के बच्चों के लिए प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने की संभावना सबसे गरीब वर्गों के बच्चों की तुलना में दोगुनी अधिक थी। लैटिन अमरीका और पूर्व एशिया में सबसे गरीब परिसंपत्तियों वाले वर्गों में पांच वर्ष की आयु से पहले ही बच्चों की मृत्यु की आशंका सबसे अमीर वर्गों के बच्चों की तुलना में तीन गुना अधिक है।
#2030 के सतत विकास के इस लक्ष्य के अंतर्गत यह संकल्प लिया गया है कि असमानता कम करने के लिए नीतियां सिद्धांत रूप में सार्वभौमिक होनी चाहिए जिनमें लाभों से वंचित और हाशिए पर जीती जनसंख्या की जरूरतों पर ध्यान दिया जाए। समावेशन को सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्रों में भी सभी आयु, लिंग, धर्म और जातीय समाजों में सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे देशों के भीतर समानता की परिस्थितियां पैदा हो सकें। जनधन-आधार-मोबाइल कार्यक्रम पर भारत सरकार जितना बल दे रही है, उसका उद्देश्य समावेशन, वित्तीय सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा की एक समग्र रणनीति है। ये सभी प्राथमिकताएं 2030 तक सबके लिए समानता हासिल करने और सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समावेशन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्यों के अनुरूप हैं। इस लक्ष्य के चलते यह भी सुनिश्चित किया गया है कि भारत वर्ष के प्रत्येक व्यक्ति को अन्य व्यक्ति के समान ही अधिकार प्राप्त हो। इसके साथ ही विकलांगता, जातीयता, मूल धर्म, आर्थिक अथवा किसी अन्य भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना तथा परिणाम की असमानताएँ कम करना भी शामिल है।
0 टिप्पणियाँ