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कोरोना महामारी के इस दौर में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ना की दूसरों पर टिप्पणी

आज हम आप सभी से एक सवाल पूछते हैं लगभग सभी के घरों में इतना दूध तो होता है कि 5-6 मेहमान आ जाएं तो चाय बन जाए, किंतु यदि अचानक से 50-60 मेहमान आ जाए तो इतना दूध तो कोई नहीं रखता है तो तब क्या आप यह बोलेंगे कि घर गरीब है, दूध की व्यवस्था भी नहीं रखता, इसका प्रबंधन फेल है नहीं ना. 


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यही हाल अस्पताल में ऑक्सीजन और दवाओं का है सब पर्याप्त मात्रा में थी, लेकिन अचानक अपेक्षा से कई गुना ज्यादा लोग गंभीर हो गए जिस कारण यह समस्या खड़ी हुई है. बड़ी बात तो यह है कि चिकित्साकर्मियों, सरकार, ब्यूरोक्रेट्स, जन-प्रतिनिधियों ने 3-4 दिनों में स्थितियों को नियंत्रित कर लिया है और लगातार स्थितियों को नियंत्रित कर ही रहे हैं. जिन्हें लगता है कोई कुछ नहीं कर रहा, वो सिर्फ 24 घण्टे उनके साथ रहकर देखें, जो सेवा में सतत् लगे हैं. 

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स्मरण रहे, यह परिस्थिति बिल्कुल अलग है, वायरस नियमित म्यूटेंट हो रहा है. कब क्या होगा, इसका अंदाजा विश्वभर के वैज्ञानिक भी नहीं लगा पा रहे हैं. नागरिकों की जान बचाने के लिए केंद्र हो या राज्य सरकारें परिस्थितियों के अनुरूप सबसे अच्छा निर्णय ले रही हैं. व्यवस्था पर उंगली उठाने से बेहतर है, उसे ठीक करने में जो हमारी अपेक्षित भूमिका है, उनका निर्वहन करें. 

सकारात्मक रहें. 

सुरक्षित रहें. 

स्वस्थ रहें.

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