Banner

"इस्तेमाल करो और फेंकों" बीजेपी पर लगे इस इल्जाम में कितनी सच्चाई?


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, लम्बे समय के बाद नजर आये हैं, और आते ही अपने तीन दशक पुराने राजनीतिक साथी रहे बीजेपी पर हमलावर होते दिखे. बाला साहब की जयंती पर कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने बीजेपी के साथ अपने 25 सालों के सफर को व्यर्थ बताया है. हालांकि ये साथ तो 35 सालों से भी पुराना था जो सीट बटवारे पर असहमति के कारण टूट गया. 

स्पाइनल सर्जरी से बाहर आने के बाद पहली बार कार्यकर्ताओं से रूबरू हुए, उद्धव ने बीजेपी को 'यूज़ एन्ड थ्रौ' की नीति अपनाने वाली पार्टी बताया. उन्होंने हिंदुत्व पर भी अपना बयान दिया, बकौल उद्धव 'हम हिंदुत्व नहीं छोड़ेंगे. हमने भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ा है, लेकिन हिंदुत्व नहीं छोड़ा. लेकिन बालासाहेब ने भाजपा से कहा था कि आप देश को संभालो. हम महाराष्ट्र की चिंता करेंगे. लेकिन उन्होंने विश्वासघात किया और हमें ही खत्म करने का प्रयास करने लगे. हमने उन्हें कई सालों तक झेला. लेकिन वे जैसे ही जीते, उन्होंने इस्तेमाल करो और फेंको की नीति अपना ली.'

अब सवाल ये है कि उद्धव की इस बात में कितना दम है कि बीजेपी इस्तेमाल कर के फेंकने में विश्वास रखती है. 

लोकसभ चुनाव हो या विधानसभा, पार्टियां अपने हिसाब से किसी भी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन करने के लिए आजाद होती हैं. लेकिन क्या इस आजादी का फायदा बीजेपी अपने हिसाब से उठाती है? उद्धव के बयान को मुद्दा बनाते हुए अगर हम कुछ पुरानी राजनीतिक गतिविधियों को खंगालने की कोशिश करे तो काफी ऐसा मसाला मिलता है जो उद्धव की बात को सही ठहराते हैं.   

शुरुआत गए साल से ही करते हैं, 

असम में अजमल बदरूद्दीन की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का समझौता पहले भाजपा के साथ रहा है. लेकिन असम विधानसभा चुनाव 2021 में AIUDF के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा ने ‘सांप्रदायिक’ करार दिया था, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 2020 में ही राज्य के तीन ज़िला परिषद चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी AIUDF की मदद से ही अध्यक्ष पद पर काबिज़ हुए थे. 

थोड़ा और पीछे चलते हैं, 

जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन सरकार बनाने से पहले बीजेपी के लिए पीडीपी पाकिस्तान परस्त पार्टी हुआ करती थी, हालांकि मतभेद होने के बाद वह फिर से गुपकर गैंग का हिस्सा हो गई. 

कुछ ऐसा ही 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना के साथ भी हुआ, महाराष्ट्र में भाजपा की 36 बरस पुराना गठबंधन छोड़कर शिवसेना जब कांग्रेस और एनसीपी के साथ आ गई तो भाजपा को ये गठबंधन खटकने लगा. 

अब चलते हैं साल 2014 - 15 में, 

The wire की एक रिपोर्ट के मुताबिक 

जनवरी 2015 में बनी इस गठबंधन को सफल बनाने में संघ के जाने-माने चेहरे और भाजपा महासचिव राम माधव की बड़ी भूमिका थी.

सरकार बनाने के लिए समझौता होने पर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में एक लोकप्रिय सरकार का गठन होने जा रहा है, लेकिन घाटी में बिगड़ रहे हालातों का हवाला देकर तीन साल बाद ही सरकार गिरा दी गई.

सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘वो हमारी ‘महामिलावट’ थी और हमें लोकतांत्रिक मजबूरी में सरकार देनी थी अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस उस समय मुफ्ती साहब को सहयोग देकर खड़ी हो जाती, तो हम तो विपक्ष में रहने के लिए तैयार थे, हमने इंतजार किया था.

गठबंधन तोड़ने के लिए तर्क दिया गया कि पीडीपी के नेतृत्व में चल रही सरकार आतंकवाद को काबू में नहीं कर पा रही है. इधर कश्मीर में सरकार गिरी और उधर केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने की तैयारी कर ली.

जब कश्मीर के नेता इसके ख़िलाफ़ खड़े हो गए तो उसी भाजपा के लिए पीडीपी फिर से दुश्मन हो गई. सत्ता के लिए हुई दोस्ती एकाएक दुश्मनी में बदल गई. पहले जो सहयोगी थे वो अब अब गुपकार ‘गैंग’ हो गए.


अब बात भाजपा और शिवसेना के 36 साल पुराने रिश्ते की 

कहते हैं कोई दोस्ती यदि 5 साल से अधिक हो जाए तो वह पारिवारिक रिश्ते में बदल जाती है, लेकिन राजनीति में परिवार का भी कोई मोल नहीं रह जाता, इसमें भी कोई दो राय नहीं है. 

भाजपा और शिवसेना का 36 साल पुराना यह गठबंधन भाजपा की चालाकियों की वजह से टूट गया. प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कहा था कि शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन राजनीति से परे है और मजबूत भारत की इच्छा से प्रेरित है.

हालांकि जब शिवसेना किसी भी कीमत पर सरकार न बना सके इसलिए भाजपा ने पहले राज्यपाल के साथ मिलकर हड़बड़ी में फडणवीस का शपथ ग्रहण करवा दिया, फिर राष्ट्रपति शासन लगवा दिया. अब जब वहां पर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की मिलीजुली सरकार बन गई है तो भाजपा के सुर ताल सब अलग हो गए. 


अंत में बात बीजेपी और अकाली दल के दो दशक से अधिक पुराने रिश्ते की...

कृषि कानूनों को लेकर दरार आई इस दोस्ती को नेताओं से लेकर जनता तक, सब ने सराहा, लेकिन अंत में उन कृषि कानूनों पर मोदी सरकार और अकाली दल की ठन गयी, जिसे सरकार ने किसानों के हिट के नाम पर वापस ले लिया. 

हालांकि इनके फिर से साथ होने की बात हो रही है, लेकिन बीजेपी अपने निर्दलीय उम्मीदवारों को काम पर लगा चुकी है, अकाली दल को लेकर कोई बहका हुआ बयान बीजेपी की तरफ से तो नहीं मिला लेकिन इस बार बादल को खूब बरसते हुए देखा गया.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ