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शिक्षा से वंचित घुमंतू समुदाय के बच्चे आखिर कब तक दर-दर की ठोकरें खाते रहेंगे?

 

भारत सरकार द्वारा भले ही शिक्षा से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाकर बच्चों को शिक्षित करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन सरकार की ये योजनाएं पूर्ण रूप से कारगर साबित नहीं हो रही हैं, जिसके चलते देश में बड़ी संख्या में बच्चें सुबह से लेकर शाम तक गंदगी में कचरा बिनने में लगे रहते हैं। 


सरकार द्वारा बालक-बालिकाओं के लिए पुस्तक, मिड-डे मील, छात्रवृति, साक्षरता मिशन तथा आंगनबाड़ी केन्द्रों पर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रावधान हैं। इन योजनाओं के बावजूद प्रशासन की अनदेखी तथा प्रचार प्रसार के अभाव में गड़िया लुहारों, बंजारों तथा घुमंतु परिवार के सैकड़ों परिवारों के लोग शिक्षा से वंचित हैं। इनके बच्चे अलसुबह ही कट्टा रिक्शा लेकर निकल पड़ते हैं। बाजार में सुबह-सुबह लगे कचरे के ढेरों में कबाड़ा ढूंढते हैं। ऐसे एक या दो नहीं बल्कि भारत के कई शहरों में हजारों की संख्या में महिलाएं तथा बच्चें इन्हीं कामों में लगे रहते हैं। 
बच्चे सरकारी महकमों के ऑफिसों के सामने, राजनेताओं के निवास के सामने, संगठनों के अधिकारियों के सामने तथा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कार्यालयों के सामने से कचरा बिनते हुए भी दिख जाते हैं। इसके बावजूद भी प्रशासन के एक भी अधिकारी का इन पर ध्यान नहीं जाता है। कोई इन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित नहीं करता है, जिससे बच्चे अपने भविष्य को भूलकर वर्तमान की चिंता से परिवार के साथ जीवन यापन कर सके। 
घुमन्तु समुदाय और इनके बच्चों को इस कगार पर लाकर छोड़ने के लिए कहीं न कहीं प्रशासन तथा जनता दोनों ही जिम्मेदार हैं। आखिर कब तक इन मासूम बच्चों को प्रशासन अनदेखा करता रहेगा? यदि अब भी प्रशासन ने अपनी रहमत की नजर घुमन्तु समुदाय और उनके बच्चों पर नहीं रखी, तो भारत एक बहुत ही दर्दनाक भविष्य का निर्माण करेगा। 

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