सामान्य तौर पर श्मशान को विलाप का स्थान ही माना जाता है, जहाँ हर कोई जाने के नाम से ही डरता है। लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा शहर के पंचमुखी मुक्तिधाम में लोग सिर्फ दाह संस्कार के लिए ही नहीं, बल्कि सुकून की तलाश में भी आते हैं। पंचमुखी मुक्तिधाम करीब 15 बीघा सरकारी जमीन पर फैला हुआ है। इस मुक्तिधाम की देख-रेख वर्ष 2007 से पंचमुखी मुक्तिधाम विकास ट्रस्ट द्वारा की जाती है।
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स्थानीय पर्यावरण प्रेमी बाबूलाल जाजू का इस मुक्तिधाम को अत्यंत मनमोहक तथा सुंदर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। यूँ तो इस शहर की पहचान टेक्सटाइल मिलों की वजह से है, लेकिन इस मुक्तिधाम के साथ आम जन के सहयोग का मजबूत ताना-बाना जुड़ा हुआ है।
ऐसे आया मुक्तिधाम को सुन्दर बनाने का विचार
कुछ साल पहले बाबूलाल जाजू गुजरात के जामनगर गए थे, तो उनके सम्बन्धी ने उन्हें वहाँ की झील दिखाने के बाद मुक्तिधाम दिखाने की बात की, तो वे चौंक गए। लेकिन जब मुक्तिधाम का शांत वातावरण देखा तो उनके मन में विचार आया कि क्यों न भीलवाड़ा में भी ऐसा किया जाए। इस प्रकार उन्होंने अपने ही शहर के कुछ लोगों को साथ लिया और काम शुरू कर दिया। शुरुआत में थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। शुरू में स्वयं के खर्च से सफाई और पानी का इंतजाम किया, इसके साथ ही नीम, बरगद, गुलमोहर जैसे कई पेड़ लगाए और उनकी देख-रेख की व्यवस्था की। बाद में पंचमुखी मुक्तिधाम विकास ट्रस्ट नाम का ट्रस्ट बनाया और जन-सहयोग से एक करोड़ रुपये एकत्र कर इस मुक्तिधाम का विकास किया। इस मुक्तिधाम के विकास के लिए नगर विकास न्यास की ओर से 45 लाख और सांसद कोष से 25 लाख रुपये की मदद मिली।
दिल छूने वाला है यहाँ का वातावरण
पंचमुखी मुक्तिधाम में आठ बरामदे, एक प्रतीक्षालय और स्वच्छ स्नानघर है। इसके अलावा यहाँ एक वाचनालय भी है, जहाँ लगभग पाँच हजार पुस्तकें हैं। यहाँ जिम भी है, जहाँ योग कक्षाएँ भी चलाई जाती हैं।
लकड़ी से दाह संस्कार की व्यवस्था के अलावा पंचमुखी मुक्तिधाम में कुछ वर्षों पहले 70 लाख रुपए के व्यय से एलपीजी चालित शवदाह गृह भी शुरू किया गया है, जिसमें फिल्हाल कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। इस मुक्तिधाम के रख-रखाव पर सालाना लगभग 10 लाख का खर्च आता है, जो जन सहयोग से उठाया जाता है।
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